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डगर पर बिहार

By साभार प्रभात खबर | Publish Date:14:29:16 PM / Sat, Mar 14th, 2015 | Updated Date:important


राज्य सरकार ने बुधवार को बिहार विधानसभा में वर्ष 2014-15 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया. इसमें कहा गया कि बिहार की अर्थव्यवस्था की हाल की विकास प्रक्रिया सशक्त और टिकाऊ रही है. कई तरह की चुनौतियों के बावजूद प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है. सामाजिक सेवाओं पर पहले की तुलना में खर्च बढ़े हैं, लेकिन औद्योगिक निवेश विकास की राह में अब भी बड़ी चुनौती बना हुआ है. बिजली के मामले में बिहार तेजी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, लेकिन बैंकिंग सेक्टर की पहुंच बढ़ाने का कार्यभार पूरा करना बाकी है. शैबाल गुप्ता अर्थशास्त्री एवं सदस्य सचिव आद्री 2014-15 के बिहार सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण के तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिहार की अर्थव्यवस्था ओवर ऑल मजबूत हुई है. कुशल वित्तीय प्रबंधन के चलते एफआरबीएम अधिनियम के प्रावधानों पर बिहार खरा उतरा है. साख जमा अनुपात (सीडी रेशियो) में बढोतरी हुई है. राष्ट्रीय स्तर पर विकास दर में कमी आने के बावजूद बिहार का विकास दर अभी भी सबसे ऊंचा बना होना इस बात का प्रमाण है कि राज्य की अर्थव्यवस्था पटरी पर है. इसमें लगातार सुधार आया है और कहीं से भी नकारात्मक या नीचे जाने का संकेत नहीं है. यह बिहार के लिए उम्मीद जगाने वाली बात है. एक दशक पहले तक की स्थिति से तुलना करने पर हम पाते हैं कि न केवल योजना आकार बढ़ा है, बल्कि प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ा है. राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार की प्रति व्यक्ति आय का अंतर भी कम हो रहा है. बिहार की अर्थव्यवस्था स्थिर हो गयी है. इ-रिवर्सेबल नहीं है. इसके संकेत नही दिख रहे. अर्थव्यवस्था का रूझान सकारात्मक दिख रहा है. वित्तीय घाटे का अनुपात एफआरबीएम एक्ट के प्रावधानों के अनुकूल ही है. सरकार के वित्तीय प्रबंधन के चलते सरकार की पूंजीगत ताकत बढ़ी है. एक मायने में यह कहा जा सकता है कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था मैच्योर स्थिति में आ गयी है. साख जमा अनुपात को लेकर बिहार की चिंता बनी रहती थी. इसमें भी अपेक्षित सुधार आया है. अब यह अनुपात 46 प्रतिशत पर पहुंच गया है. इसका सीधा अर्थ है कि राज्य में निवेश हुए हैं. सीडी रेशियों में बढोतरी का संबंध आम लोगों के निवेश से नहीं होता. वित्तीय लेन-देन से रोजगार के क्षेत्र पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. ओवर ऑल इकोनोमी के सपोर्ट के कारण ही सरकार ने योजना आकार में भारी बढ़ोतरी की है. 2005 के पहले जो स्थिति थी, उसे मौजूदा समय से तुलना करने पर जमीन-आसमान का फर्क नजर आता है. बजट आकार भी बढ़ा है. वर्ष 2000 में बिहार विभाजन के बाद बिहार की इकोनॉमी को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई थी. लेकिन, अब सीडी रेशियों में बढोतरी, विकास दर का उंचा रहना और वित्तीय घाटे पर नियंत्रण से तसवीर साफ होती जा रही है. अब इकोनॉमी स्टेबल हो गयी है. निर्माण के क्षेत्र में सुधार आया है. राज्य सरकार का अपना कर राजस्व सालाना 25 प्रतिशत की दर से बढा है. 2009-10 में 8090 करोड़ रुपये की कर उगाही हुई थी. यह वर्ष 2013-14 में बढ कर 19961 करोड़ रुपये हो गया. यह सिलसिला लगातार जारी है. यह कुशल वित्तीय प्रबंधन की ओर इशारा करता है. विनिर्माण क्षेत्र के विकास के लिए नीति का फोकस अधिसंरचना विकास हेतु निवेश पर हो रहा है. शिक्षा, स्वास्थ्य पर जोर जरूरी डॉ नंदिनी मेहता विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र, जेडी वीमेंस कालेज बिहार की अर्थव्यवस्था को बेहतर माना जा सकता. लेकिन, आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र को प्राथमिकता सूची में जगह देनी होगी. यह चुनावी साल है. सरकार को अपनी प्राथमिकता सूची तय करनी होगी और यह भी देखना होगा कि वह अपनी विकास योजनाओं को कैसे पूरा करेगी. इसके लिए पैसे कहां से जुटाये जा सकते हैं. यह सही है कि वार्षिक विकास दर में कमी आयी है. वह दो अंकों से एक अंक पर सिमट गयी है. बावजूद दूसरे राज्यों से बिहार की स्थिति बेहतर है. विकास दर में कमी आना बिहार जैसे पिछड़े राज्य की सेहत के लिए सही नहीं है. लेकिन, सरकार को प्राथमिकता सूची पर ध्यान केंद्रित करना होगा,तभी विकास की रफ्तार में तेजी आयेगी. अर्थव्यवस्था पटरी पर रहे, इसके लिए किसी भी प्रदेश में राजनीति, ब्यूरोक्रेसी और कानून व्यवस्था की स्थिति का सही होना आवश्यक होता है. इस दृष्टि से दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार की स्थिति अच्छी मानी जा सकती है. प्रति व्यक्ति आमदनी में अभी भी हम अन्य राज्यों से पीछे बने हुए हैं. प्रति व्यक्ति आय में सुधार आया है लेकिन, राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार बहुत पीछे हैं. यह बड़ी खाई है जिसे भरा जाना आवश्यक है. इसके लिए सरकार को दीर्घकालिक उपाय करने होंगे. आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि खेती, किसानी पर भी सरकार को फोकस करना होगा. सेक्टोरल डेवलपमेंट के मामले में प्रगति हुई है. अब प्राइमरी सेक्टर से सेकेंडरी सेक्टर पर ध्यान केंद्रित हुआ है. प्राइमरी सेक्टर का महत्व कम होता जा रहा है. विकास की परिभाषा में इसे मानक माना जाता है. सर्वेक्षण में फिजिकल डेफिसिट कम होने की बात कही गयी है. इसके बावजूद अभी 54 हजार करोड़ रुपये का कर्ज सरकार के लिए चुनौती बनी हुई है. कुल मिलाकर राज्य की आर्थिक स्थिति बेहतर कही जा सकती है. शिक्षा के क्षेत्र चाहे प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा क्यों नहीं हो. इसको प्राथमिकता सूची में ऊपर रखना जरूरी होगा. इसे बेहतर किये बिना अर्थव्यवस्था को बेहतर नहीं माना जा सकता. सामाजिक क्षेत्र में खासकर महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में सरकार को कई कदम उठाने होंगे.अस्पतालों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है. यहां संस्थागत प्रसव की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन अभी भी इस दिशा में कई कदम उठाये जाने की जरूरत है. सामाजिक सेवाओं पर बढ़ रहा खर्च हाल के वर्षो में बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास की गति काफी तेज रही है. वर्ष 2009-10 से 2012-13 के बीच अर्थव्यवस्था 11.3}


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