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मजदूरों और दलितों के मसीहा 'बाबू जगजीवन राम

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Wed ,05 Apr 2017 06:04:08 pm |


समाचार नाऊ ब्यूरो  : भारतीय राजनीति के कई शीर्ष पदों पर आसीन रहे जगजीवन राम न सिर्फ एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी, कुशल राजनीतिज्ञ, सांसद, सक्षम मंत्री एवं योग्य प्रशासक रहे बल्कि कुशल संगठनकर्ता, सामाजिक विचारक और सफल वक्ता भी थे. आधुनिक भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष जिन्हें आदर से 'बाबूजी' के नाम से संबोधित किया जाता था. लगभग 50 वर्षों के संसदीय जीवन में राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा बेमिसाल है. उनका संपूर्ण जीवन राजनीतिक, सामाजिक सक्रियता और विशिष्ट उपलब्धियों से भरा हुआ है.

जगजीवन राम का जन्म बिहार की उस धरती पर हुआ था जिसकी भारतीय इतिहास और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. बाबू जगजीवन राम का जन्म पांच अप्रैल 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था. उनका नाम जगजीवन राम रखे जाने के पीछे प्रख्यात संत रविदास के एक दोहे, प्रभु जी संगति शरण तिहारी, जगजीवन राम मुरारी, की प्रेरणा थी. इसी दोहे से प्रेरणा लेकर उनके माता पिता ने अपने पुत्र का नाम जगजीवन राम रखा था. उनके पिता शोभा राम एक किसान थे जिन्होंने ब्रिटिश सेना में नौकरी भी की थी.

हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला व भोजपुरी में उनके विचारों को सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते और अपने आवाज से वो संसद में भी लोगों को निरुत्तर कर देते. जब वो विद्यालय में ही थे तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और उनका पालन-पोषण उनकी माता जी को करना पड़ा. अपनी माताजी के मार्गदर्शन में जगजीवन राम ने आरा टाउन स्कूल से प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की. जाति आधारित भेदभाव का सामना करने के बावजूद जगजीवन राम ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से विज्ञान में इंटर की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की.

1936 में 28 साल की उम्र में ही उन्हें बिहार विधान परिषद का सदस्य चुना गया था. बाद में बिहार में कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बनें किन्तु कुछ समय में ही अंग्रेज सरकार की लापरवाही के कारण गांधी जी के कहने पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया. जगजीवन राम उस समय गांधी जी के नेतृत्व में आजादी के लिए संघर्ष करने वाले दल में शामिल हुए, जब अंग्रेज अपनी पूरी ताकत के साथ आजादी के सपने को हमेशा के लिए कुचल देना चाहते थे. 

एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जगजीवन राम महात्मा गांधी के नेतृत्व में 'सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन' में शामिल भी हुए. इसकी वजह से 1940 और 1942 में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. लेकिन इससे वे रूके नहीं और समाज के लिए कई बेहतर कार्य में लगे रहे. वो एक महान स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के प्रति समर्पित नेता थे. 

भारत में दलित क्रांति के महानायक बाबू जगजीवन राम ही हैं, जिन्होंने बूरी स्थितियों में दलित समाज के विकास के लिए धरातल पर कार्य किया और सारे समाज के अपना लोहा भी मनवाया. जगजीवन राम ने अनेक रविदास सम्मेलन आयोजित किए थे और कोलकाता के कई भागों में गुरू रविदास जयंती मनाई थी. 1934 में, उन्होंने कोलकाता में अखिल भारतीय रविदास महासभा और अखिल भारतीय दलित वर्ग लीग की स्थापना की. इन संगठनों के माध्यम से उन्होंने दलित वर्गों को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल किया. उनका विचार था कि दलित नेताओं को न केवल समाज सुधार के लिए संघर्ष करना चाहिए बल्कि राजनीतिक, प्रतिनिधित्व की मांग भी करनी चाहिए.

बाबूजी के प्रयत्नों से गांव-गांव तक डाक और तारघरों की व्यवस्था का भी विस्तार हुआ. रेलमंत्री के रूप में बाबूजी ने देश को आत्म-निर्भर बनाने के लिए वाराणसी में डीजल इंजन कारखाना, पैरम्बूर में 'सवारी डिब्बा कारखाना' और बिहार के जमालपुर में 'माल डिब्बा कारखाना' की स्थापना की. सन 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद वह सत्ता की उच्च सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे.

पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की. बाबूजी किसी भी मंत्रालय में समस्या का समाधान बड़ी कुशलता से किया करते थे. भारत की संसद को बाबू जगजीवन राम अपना दूसरा घर मानते थे. रेल मंत्री के पद पर रहने के दौरान उन्होंने रेलवे के आधुनिकीकरण की बुनियाद डाली और रेलवे कर्मचारियों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रारम्भ की. उन्हीं के प्रयास से आज रेलवे देश का सबसे बड़ा विभाग है. वे सासाराम क्षेत्र से आठ बार चुनकर संसद में गए और भिन्न-भिन्न मंत्रालय के मंत्री के रूप में कार्य किया। वे 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए.

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ा तो उनका प्रयास था कि पाकिस्तान की भांति भारत के कई टुकड़े कर दिए जाएं. शिमला में कैबिनेट मिशन के सामने बाबूजी ने दलितों और अन्य भारतीयों के मध्य फूट डालने की अंग्रेजों की कोशिश को नाकाम कर दिया. अंतरिम सरकार में जब बारह लोगों को लार्ड वावेल की कैबिनेट में शामिल होने के लिए बुलाया गया तो उसमें बाबू जगजीवन राम भी थे. उन्हें श्रम विभाग दिया गया. इस समय उन्होंने ऐसे कानून बनाए जो भारत के इतिहास में आम आदमी, मजदूरों और दबे कुचले वर्गों के हित की दिशा में मील के पत्थर माने जाते हैं. उन्होंने 'मिनिमम वेजेज एक्ट', 'इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट' और 'ट्रेड यूनियन एक्ट' बनाया जिसे आज भी मजदूरों के हित में सबसे बड़े हथियार के रूप में जाना जाता है. उन्होंने 'एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट' और 'प्रोवीडेंट फंड एक्ट' भी बनवाया.

1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से लड़ाई के कारण गरीब और किसान भुखमरी से लड़ रहे थे. अमेरिका से पीएल- 480 के अंतर्गत सहायता में मिलने वाला गेहूं और ज्वार मुख्य साधन था. ऐसी विषम परिस्थिति में डॉ नॉरमन बोरलाग ने भारत आकर 'हरित क्रांति' का सूत्रपात किया. हरित क्रांति के अंतर्गत किसानों को अच्छे औजार, सिंचाई के लिए पानी और उन्नत बीज की व्यवस्था करनी थी. आधुनिक तकनीकी के पक्षधर बाबू जगजीवन राम कृषि मंत्री थे और उन्होंने डॉ नॉरमन बोरलाग की योजना को देश में लागू करने में पूरा राजनीतिक समर्थन दिया. दो ढाई साल में ही हालात बदल गये और अमेरिका से अनाज का आयात रोक दिया गया. भारत 'फूड सरप्लस' देश बन गया था.

आजादी के बाद जब पहली सरकार बनी तो वे उसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल हुए और जब तानाशाही का विरोध करने का अवसर आया तो लोकशाही की स्थापना की लड़ाई में शामिल हो गए. 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय इन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी का साथ दिया तथा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. 1970 में इन्होनें कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और जनता दल में शामिल हो गये थे. 

6 जुलाई, 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान राजनीतिज्ञ का निधन हो गया. बाबू जगजीवन राम को भारतीय समाज और राजनीति में दलित वर्ग के मसीहा के रूप में याद किया जाता है. वह स्वतंत्र भारत के उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्होंने देश की राजनीति के साथ ही दलित समाज को भी नयी दिशा प्रदान की.



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