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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Tue ,15 Aug 2017 12:08:17 pm |
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
लोग आगे बढ़ रहे हैं , बढ़ रहा अपना चमन
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,भाईचारा ,ये हसन।
ज़िन्दगी हो ख़ुशनुमा सा , ख़्वाब ये आबाद है
अम्न बिखरा है,फ़िज़ाँ में, धड़कनें आज़ाद हैं ।
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
हिन्द है , कश्मीर से कन्याकुमारी , तक वहाँ
अरुणाचल से कच्छ तक,रौशन है अपना ये ज़हाँ।
गंगा , यमुना, कावेरी , गोदावरी औ सोन है
ब्रह्म पुत्रा,सतलजों में ,महानदी का कोण है ।
बह रही , हर नद में , भक्ति , देश की , प्रह्लाद है
बदली है , भारत की क़िस्मत ,देश ये आज़ाद है ।
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
सतपुड़ा है, नीलगिरि,औ नागपुर अड़ा हुआ
है हिमालय,विंध्य एक , अरावली खड़ा हुआ ।
घाट ,पूर्वी - पश्चमी , के बीच में , मैदान है
अंडमानों , द्वीपों , लक्ष्यों ,रूप में वरदान है ।
पर्वतों , इन घाटियों , दर्रों में भारत शाद है
हिन्द है ,सागर अनूठा ,जिसमे भारत वाद है ।
है तमिल,तेलुगु ,व बांग्ला, व असमिया, भाष है
कन्नड़ा , मलयाली ,पंजाबी ,मराठी , आस है ।
एक बिहारी ,काश्मीरी,सिंधी व यू पी, ख़ाश है
गुजराती,एम पी ,व उड़िया , गोवा में मिठास है ।
बोली छतीशगढ हो या झारखंडी ये जोहार हो
उत्तराखंड से , बह रहा , हिमाचली बयार हो ।
नागा हो , या मिज़ो हो ,या मणिपुरी ये , नृत्य हो
अरुणाचल ,सिक्किम छटा हो ,त्रिपुरी साहित्य हो ।
रूपों में हर , गूँजता, भारत का ये आह्लाद है
'क्रांति' ,यौमे-आज़ादी, पे , तू भी बन सज़्ज़ाद है ।
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
है , ये आर्यावर्त , ये इंडिया , या के हिन्दुस्तान है
एक वो है इतिहास , कितने सुर औ कितने तान है ।
जातियाँ कितनी है ,कोई है दलित , पिछड़ा कोई
ऊँची भी हो जात ,पर है ,भेद, अब बिलकुल नहीं ।
प्रेम एक , गहरा घुला , है , अनेकता में एकता
लेके, सबका साथ ,अपना देश, सुन्दर झाँकता ।
है , स्वदेशी रंग भी ,औ एक, विदेशी , ढंग भी
दुनियां में सबसे बड़ा ,ज़म्हूरियत ,का संग भी ।
आपसी रिश्ता बढ़ाने , ज़ारी हर , संवाद है
है यहाँ स्वाधीन सपने ,स्वतंत्र हर ,प्रवाद है ।
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
मज़हबें , कोई रहे , सहिष्णुता , स्वीकार है
मंदिर,मस्ज़िद,गुरूद्वारे,गिरिजा , से बहता प्यार है ।
तिरंगा , फ़हरा के, गाएँ , गीत , ये, सौ बार है
हम हैं ,हिन्दुस्तानी ,औ ,भारत पे, जाँ निसार है ।
कर नमन ,बलिदान, उनका ,देश पे , जो, मर मिटे
क्रांतिकारी औ अहिंसा से ,जो सब कुछ ,कर मिटे
याद कर , उन वीरों की , अब देश ये आज़ाद है
हो फ़तह , सच्चाई की , अब देश ये आज़ाद है ।
जागी सी है , दिल की, हसरत, देश ये आज़ाद है
माँगो, 'क्रांति' , मौला --बरक़त , देश ये आज़ाद है ।
है नहीं , अब कोई वहशत ,देश ये आज़ाद है
बढ़ गयी है, अपनी अज़मत ,देश ये आज़ाद है ।
साभार
डॉ क्रांति चन्दन जयकर
सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष(प्रभारी)
चर्म,कुष्ठ एवं यौन रोग विभाग
इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान संस्थान
शेखपुरा , पटना- 14
मो-08969953194
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