Breaking News

गंगा नदी खतरे के निशान के ऊपर, पटना में बाढ़ का खतरा बिहार में बाढ़- 4 किमी नांव की डोली बना अपनी दुल्हन लेने पहुंचा लड़का चिराग को छोड़कर गए लोगों का नहीं है कोई जनाधार- कांग्रेस सुशांत मामले को लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव का बयान, राजगीर मेंं बनने वाली फिल्म सिटी का नाम हो सुश बिहार में बाढ़ से 22 जिलों की हालत बदहाल, 82 लाख लोग हुए हैं प्रभावित सुशांत सिंह मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, सीबीआई करेगी मामले की जांच नीतीश कुमार ने दिया शिक्षकों को तोहफा, पूरे बिहार में कहीं भी ले सकते हैं तबादला नीतीश सरकार ने नियोजित शिक्षकों की नई सेवा शर्त लागू कर खेला 'मास्टर स्ट्रॉक' MenstrualHygieneDay पर जागरूकता के लिए उठाए जा रहे कदम, पर कम नहीं आलोचनाओं का जोर जद (यू0)- दलित-महादलित प्रकोष्ठ की राज्य कार्यकारिणी की संयुक्त बैठक गया में युवती से बलात्कार के बाद हत्या नियोजित शिक्षकों ने कहा जल्द उनकी मांगें पूरी नहीं तो आंदोलन आंगनवाड़ी सेविका-सहायिका का हड़ताल काफी दुखद- कृष्ण नंदन वर्मा मोतिहारी- २०१९ की चुनाव तैयारी में जुटा जिला प्रशासन रामगढ़- पतरातू डैम परिसर में अवैध पार्किंग टिकट के नाम पे वसूली


मणिपुर से कश्मीरः क्या करें केंद्र?

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:14:38:15 PM / Sat, Aug 13th, 2016 | Updated Date:normal


संतोष हुआ, जब मणिपुर की बहादुर बेटी इरोम चानू शर्मिला ने स्वेच्छा से 16 वर्षों से जारी आमरण अनशन को समाप्त कर लिया। आत्म-यातना के बाद शर्मिला ने अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु राजनीतिक मार्ग चुना है। 42 वर्षीय शर्मिला का यह बेजोड़ धैर्य और साहस ही है, जिसने उन्हे विश्व के समक्ष लौह-महिला के रुप में प्रस्तुत किया। लंबे समय तक भूख हड़ताल से इरोमा का शरीर भले ही कमजोर हो गया हो, किंतु कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करने की उनकी आंतरिक शक्ति और इच्छाशक्ति कई गुना बढ़ गई। विगत इन वर्षों में शर्मिला को नाक में एक नली के माध्यम से तरल भोजन दिया जा रहा था।

शर्मिला का संघर्ष सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा ) के विरुद्ध है। उनकी मांग है कि केंद्र और राज्य सरकार इस विशेष कानून को मणिपुर से हटा लें। वर्ष 1958 में “अफ्सपा” संसद द्वारा पारित किया गया था और तब से यह कानून के रूप में काम कर रहा है। आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किए गए थे।

1990 में जम्मू-कश्मीर में अफ्सपा, बढ़ती आतंकी घटनाओं के बाद लागू किया गया था, तब से आजतक यह कानून सेना को प्राप्त है। अफ्सपा कानून के अंतर्गत, सेना को बिना किसी वारंट के गिरफ्तारी का विशेषाधिकार है। संदेह के आधार पर जबरन तलाशी का अधिकार है। कानून तोड़ने वालों पर फायरिंग का अधिकार भी इस कानून के माध्यम से सेना को प्राप्त है। मणिपुर के कई गैर-सरकारी संगठन, उदार कार्यकर्ताओं और मानवाधिकारों के प्रचारकों का आरोप है कि अफ्सपा की आड़ में सेना अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर रही है और निरपराध लोगों को मौत के घाट उतार रही है।

मणिपुर के हिंसा ग्रस्त क्षेत्रों में कई बार सशस्त्रबलों द्वारा की गई गोलीबारी में लोगों की मौत की घटनाएं सामने आई है। किंतु वर्ष 2004 में थांगजाम मनोरमा देवी के मामले ने भारी जन-आक्रोश पैदा कर दिया। 34 वर्षीय मनोरमा देवी को असम राइफल्स के जवानों द्वारा हिरासत में लिया गया था, लेकिन उसका शव बाद में सड़क से बरामद हुआ। न केवल मणिपुर, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर राज्यों में “अफ्सपा” को लेकर लोगों का गुस्सा उबल पड़ा। परिणामस्वरुप, जनता के गुस्से के आगे झुकते हुए केंद्र और राज्य सरकार को मणिपुर के सात विधानसभा क्षेत्रों से अफ्सपा को वापस लेना पड़ा। उक्त घटना के बाद पूर्वोत्तर राज्यों ने अफ्सपा की समीक्षा के लिए न्यायिक जांच समितियों का गठन किया। अधिकांश ने इस कानून को वापस लेने की पैरवी की, बावजूद इसके सरकार ने इसे जारी रखा।

वर्ष 2013 में उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष हेगड़े के नेतृत्व में समिति का गठन किया था, जिसने 1,200 तथाकथित फर्जी मुठभेड़ के मामलों में से केवल छह को ही फर्जी माना। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि अशांत क्षेत्रों में सेना अत्याधिक बल प्रयोग न करे। फिलहाल, अफ्सपा की वैधता और संवैधानिकता का मामला शीर्ष अदालत में विचाराधीन है।

मणिपुर की भांति जम्मू-कश्मीर के शीर्ष नेता भी घाटी में सेना की उपस्थिति की आलोचना करते नजर आते है। उदाहरण के लिए उमर अब्दुल्ला और मुफ्ती मोहम्मद सईद का शासनकाल ले, तो दोनों ही सरकारों ने अफ्सपा के अंतर्गत सेना को मिले अधिकारों को वापस लेने या उसे चरणबद्ध तरीके से वापस लेने की वकालत की है। किंतु सेना का कहना है कि बिना इन शक्तियों के आतंकवादियों का खात्मा घाटी में संभव नहीं है। स्वयं केंद्र सरकार भी मानती है कि केवल सेना ही पाकिस्तानी सेना से प्रशिक्षण प्राप्त आतंकियों, घुसपैठियों और घाटी में व्याप्त आतंकी फैक्ट्रियों से निपट सकती है।

वर्ष 1995 से लेकर 2016 तक के शासनकाल में किसी भी प्रधानमंत्री ने देश की अखंडता के लिए जम्मू-कश्मीर और मणिपुर को अकेले पुलिस बल के भरोसे छोड़ने का जोखिम नहीं लिया है। सभी जमीनी सच्चाई से परिचित रहे है कि यदि कुछ अनैतिक कृतों को छोड़ दिया जाए, तो बिना सेना के देश के अशांत क्षेत्रों में शांति स्थापित करना संभव नहीं है। अफ्सपा के दुरुपोयग की बात को सरकार भी स्वीकार करती है। तभी झूठे मुठभेड़ का मामला प्रकाश में आने पर दोषियों को सजा देने के लिए जांच समिति गठित की गई है।

त्रिपुरा में वामपंथी सरकार ने पिछले वर्ष ही सशस्त्र सेना विशेषाधिकार वापस लेने का फैसला किया था, जबकि मेघालय सरकार ने इसे अपने राज्य में बरकरार रखा है। वर्ष 2004 में असम राइफल्स द्वारा मणिपुर में बड़े स्तर पर अधिनियम के दुरुपयोग के आरोपों के बाद राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति जीवन रेड्डी के नेतृत्व में समिति का गठन किया था। जांच में जीवन रेड्डी समिति ने अफ्सपा को वापस लेने की सिफारिश की, किंतु केंद्र और राज्य सरकार ने इससे इनकार कर दिया।

विधायिका और मीडिया को संविधान द्वारा कई अधिकार प्राप्त है, जिसमें आरोप लगते है कि वह भी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते है। इससे संबंधित कई उदाहरण हमारे सामने भी है। बकौल समीक्षक, सैन्य नेतृत्व का कर्तव्य है कि वह सुनिश्चित करे कि देश में चाहे कितनी भी भड़काऊ परिस्थिति क्यों न हो, वह एक सीमा में रहकर कार्रवाई करे। लेकिन कबतक ?

सेना द्वारा अफ्सपा के दुरुपयोग को लेकर जो आलोचक, सरकार पर अपने नागरिकों पर अत्याधिक बलप्रयोग को प्रोत्साहन देने का आरोप लगाते है, वह अक्सर वास्तविकता की अनदेखी करते है। घाटी में सुरक्षाबलों पर जो लोग पथराव करते है, सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाते है और देशविरोधी नारे लगाते है, वह सभी मजहबी जुनून से प्रेरित होते है। आंदोलनकारियों द्वारा उग्र हिंसा सुरक्षाबलों को विवश कर देता है कि वह बल प्रयोग करे। उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाबलों को मजबूरी में गोली चलानी पड़ती है, जिसमें कई लोग घायल होते है, तो कुछ की मौत हो जाती है। हिज्बुल आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में बनी स्थिति



Related News


जरूरी है पत्रकारों की पूरी सुरक्षा- वरुण गाँधी

PM मोदी का एक दिवसीय बनारस दौरा नमामि गंगे

शराब ने उजाड़ी हजारो की दुनिया

71 वे स्वतंत्रा दिवस पे डॉ क्रांति चन्दन जयकर की देश

न कोई सरोकार, न कोई पॉलिसी फिर भी कहा "अन्नदाता

खुद पति की मौत की खबर पढ़ी इस न्यूज एंकर

मजदूरों और दलितों के मसीहा 'बाबू जगजीवन राम

चंपारण सत्याग्रह को याद करने का समय

हाजीपुर के कुंदन कुमार का भारतीय वन सेवा में देश

क्रिकेट की पिच से लेकर राजनेता तक सिद्धू का सफर

बच्चे देश के हैं लावारिस नहीं- सरकार 20 लाख स्ट्रीट

गुरमेहर के पक्ष में उतरी मां,पाक पर टिप्पणी की बताई

Follow Us :

All rights reserved © 2013-2024 samacharnow.com