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पत्ता ही जीवन है मेरा क्या बोलू- आदिम जनजातियो की जिन्दगी

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:18:22:25 PM / Sat, Jun 11th, 2016 | Updated Date:normal


पत्ता ही जीवन है मेरा क्या बोलू

दिल के अन्दर घाव बहुत है क्या बोलू 

पिने को पानी भी मुझको मिलता नहीं

जीने का पर चाव बहुत है क्या बोलू

आदिम जनजातियो की जिन्दगी का पता बनकर रह चुकी है गढ़वा जिला के ओबरा पंचायत का तुल्बुला गाव जहा के गरीब  पत्ते के सहारे ही इन सैकड़ो गरीब परिवारों की रोजी रोटी चलती है इस कार्य में इनके बच्चे भी स्कूल छोड़ पतल की बुनाई में लगे रहते है प्रतेक परिवार एक दिन में 500 से 1 00 तक पतल बनाते है है /और उशी के बेचे गए पैसे से चलती है जिन्दगी /इन गरीबो की माने तो प्रसाशन दुआरा किसी तरह की सुबिधा नहीं दी गयी है  झारखण्ड सर्कार आदिम जनजातियो के विकास के लिए कई योजनाए चला रही है पर योजना इन गरीबो तक पहुच रही या जिला प्रद्सशन द्वारा सिर्फ खाना पूर्ति ही किया जा रहा है /जी हा एक ऐसा गाव है जहा की लोग गरीबी की दहलीज पर खड़ा है फिर भी सरकारी उपेक्षाओ के बावजूद भी अपना जीने रह ढूढ़ लिया है.

झारखंड सरकार भले ही झारखंड के आदिवशियो के विकास के लिए करोडो रुपये पानी की तरह वहाँ रहा हो लेकिन आदिवशियो के विच नही पहुँच पा रहा हैं.या तो अधिकारी और बिचुलिये इस पैसे के बंदर बाट कर दे रहे हैं यह जाँच के बाद ही कूछ भी स्पष्ट हो पायेगा.लेकिन सबसे बड़ी सवाल यह हैं.की आखिर कार जिला प्रशासन का विकास कहाँ हो रहा हैं की इन गरीब आदिवशियो तक नही पहुँच पा रहा हैं.फ़िर भी इन आदिवशियो ने अपना पेट के भूख मिटाने की जुगाड़ खुद ककर ली हैं.लेकिन झारखंड सरकार के मुँह पर विकास के नाम पर तमाचा से कूछ कम नही दिखता.क्योंकि विकास की बात करने वाला सरकार इन आदिवशियो के लिए कोई भी सार्थक पहल नही कर पा रहा.जिससे झुब्ध होकर इनलोगों ने अपनी जीने का रास्ता स्वयं खोज ली इन आदिवशियो के जज्बे को हम भी सलाम करते हैं.इनके लिए जिला प्रशासन कोई कदम उठायेगा यह एक झारखंड सरकार और जिला प्रशासन के लिए सवाल और चुनौती बनता दीख रहा हैं 

 



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