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पाक, चीन और पी.एम. मोदी- राकेश कुमार आर्य

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:16:23:01 PM / Thu, Sep 8th, 2016 | Updated Date: Fri ,10 Feb 2017 11:02:44 am


पाकिस्तान इस समय अपने आका चीन से ही भोजन पानी प्राप्त कर रहा है, अर्थात उसे आतंकी गतिविधियों में लगाये रखने और भारत के साथ घृणा का व्यापार करवाते रहने के लिए चीन ही प्रोत्साहित कर रहा है। जब संसार में कलह, कटुता और ईष्र्या का सबसे घातक परिवेश बन चुका हो, तब चीन की ऐसी नीतियां सचमुच चिंता का विषय हैं। चीन नास्तिक होकर यह भूल गया है कि मानवता के प्रति उसकी जिम्मेदारी क्या है? और यदि वह अपनी जिम्मेदारी से भागता है तो उसकी इस अधर्मयुक्त भूमिका का परिणाम क्या होगा? इस समय किसी देश या किसी मजहब के लिए संकट की बात करना संकीर्णता या कम निगाही की बात होगी, क्योंकि इस समय तो संपूर्ण मानवता ही खतरे में है। उत्तर कोरिया में कौन क्या कर रहा है और वहां किस प्रकार एक 'राक्षस' दिन प्रतिदिन अपना आकार बढ़ा रहा है, वह किधर गिरेगा और किधर कितना उत्पात बचाएगा-यह बात विचारने की है, साथ ही यह भी कि वह चाहे जहां गिरे, उसकी छुरी खरबूजे (मानवता) को ही काटेगी। समय संकीर्णताओं की दीवारों से बाहर निकलने का है। यदि चीन पाकिस्तान को केवल भारत के लिए 'खतरा' बनाकर पेश करने की नीति पर चल रहा है तो उसे यह स्मरण रखना चाहिए कि इससे वह भी अछूता नही रहेगा। उसके धर्म (बौद्घ धर्म की जननी भारतभूमि रही है) का स्रोत यदि जलेगा तो वह स्वयं भी जलेगा।


हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को उसकी ही धरती पर कुछ ऐसा ही समझाने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने अपनी कूटनीतिक भाषा में चीन को यह बताया है कि वह अधर्मी रास्ते को त्यागकर धर्म के रास्ते पर आ जाए। मोदी ने भारत की भाषा में (हमारे यहां देहात में किसी अन्यायी, झूठे और फरेबी व्यक्ति से आज भी यही कहा जाता है कि तू धर्म से कह कि जो तूने किया है या जो तू कर रहा है-वह सही है क्या?) चीन से पूछ लिया है कि जो तू कर रहा है धर्म से कह कि वह कितना न्यायसंगत है? अर्थात पाकिस्तान को शह देना छोड़ और मानवता के हितचिंतन की बात कर। सचमुच मोदी ने पाकिस्तान को सीधे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नंगा करके उसी के 'मित्र' की आंखों में आंखें डालकर जिस प्रकार के साहस का परिचय दिया है उसे केवल वही कर सकते हैं।


भारत के प्रधानमंत्री ने कई विश्व नेताओं की उपस्थिति में विश्व बिरादरी को यह स्पष्ट संकेत और संदेश दिया है कि भारत उत्पाती या युद्घोन्मादी नही है, वह विश्व समुदाय के प्रति अपने कत्र्तव्य कर्म को जानता है, और इसीलिए विधाता की इस प्यारी सृष्टि को अपने काले कारनामों से मिटाने या समाप्त करने का कोई कर्म नही कर सकता। प्रधानमंत्री की नीयत साफ है कि हम जहां अपने कत्र्तव्य कर्म के प्रति सजग हैं, वहीं अपने राष्ट्रधर्म के प्रति भी उतने ही सावधान हैं, अर्थात अपने स्वाभिमान का सौदा हम किसी को करने की अनुमति नही दे सकते। प्रधानमंत्री की इसी स्पष्टवादिता और हृदय की पवित्रता का विश्व कायल है, उनकी आवाज इस समय एक 'स्वाभिमानी भारत' की आवाज है, जिससे सारा देश गौरवान्वित है। उनकी विदेशयात्राओं के परिणाम अब आने लगे हैं और जो लोग उनकी विदेश यात्राओं की यह कहकर आलोचना किया करते थे कि मोदी अधिक समय विदेशों में दे रहे हैं, अब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय नेताओं का भारत के प्रधानमंत्री की बात को मिल रहा समर्थन शांत करने के लिए पर्याप्त है। जिसे देखकर यह समझा जा सकता है कि सीएम की विदेशयात्राओं का उद्देश्य क्या रहा है? आज अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को उपेक्षित करके कोई निर्णय लिया जाए-यह संभव नही है।


जी-20 देशों की दो दिवसीय बैठक में प्रधानमंत्री मोदी अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान को निरंतर घेरते रहे। हमें ध्यान रखना चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी की अपने पक्ष को प्रस्तुत करने की शैली के सामने पाकिस्तान आज बगलें झांक रहा है। वास्तव में किसी व्यक्ति की अपनी बात को प्रस्तुत करने की शैली ही तो होती है जो उसे विजेता या पराजित घोषित करा देती है। अब तक पाकिस्तान भारत के विरूद्घ अपना पक्ष ऐसे प्रस्तुत करता था जैसे कि भारत बड़ा भाई होकर छोटे भाई का गला काट रहा था, पर अब स्थिति में परिवर्तन आया है। अब हम पूरी तैयारी के साथ अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जाते हैं, अब हमारे लिए राष्ट्र सर्वोपरि व सर्वप्रथम होता है। कोई मौजमस्ती नही, कोई दारू नही और कोई फालतू की बात नही। हम अपने समय का सदुपयोग करते हैं। हम पी.एम. मोदी की प्रशंसा किये बिना स्पष्ट करना चाहते हैं कि हर नेता को ऐसा ही होना चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री स्वदेश लौट आये हैं। चीन हमारे पी.एम. मोदी को समझ गया है कि वह किस मिट्टी के बने हैं? भारत को सावधान रहना होगा, क्योंकि क्रिया की प्रतिक्रिया सृष्टि का नियम है।



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