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संघर्ष यात्रा देह यात्रा सत्ता यात्रा रही है आपहुदरी की रमणिका गुप्ता

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:21:19:54 PM / Sat, Aug 13th, 2016 | Updated Date:normal


हिन्दी की लेखिका और बिहार विधान मंडल की पूर्व सदस्य रमणिका गुप्ता की अपनी संघर्ष यात्रा रही है। देह यात्रा रही है। सत्ता यात्रा रही है। कभी हारीं, कभी जीतीं। यौन आनंद और यौन प्रताड़ना की सीमा रेखा। सुरक्षा का अहसास और सुरक्षित होने का भ्रम। और फिर अपनी पहचान का अंतहीन संघर्ष। यही हैं रमणिका गुप्ता।

पढ़ना हमारे स्वभाव में नहीं है। रमणिका गुप्ता की आत्मकथा ‘आपहुदरी’ की चर्चा साथियों से सुनी थीं। उसकी विषय-वस्तु की चर्चा होती थी। इस पुस्तक में बिहारी राजनेताओं के साथ यौन आनंद या यौन प्रताड़ना का उनका आत्मानुभव है। जैसा झेला, वैसा लिखा। कोई लाग-लपेट नहीं। एक नेता के बारे में उन्होंने पूरी भूमिका के साथ लिखा- ‘नेता जी आए और देह में आग लगाकर चले गए। बाद में उनका बॉडीगार्ड आया। बॉडीगार्ड ने कहा- नेता जी, जो आग लगा गए हैं, हम उसे बुझाने आए हैं।‘ पूरी घटना का रोचक वर्णन। बिहार के मुख्यमंत्रियों से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक की देह गाथा। देह को लेकर कांग्रेसी हों या समाजवादी, सभी का एक ही नजरिया।

लेकिन पुस्तक सिर्फ देह गाथा नहीं है। पुस्तक में धनबाद की कोलियरी में राजपूत और भूमिहारों का सत्ता संघर्ष, ब्राह्मणों का दखल की भी चर्चा है। समाजवादी रानजीति में अगड़ों-पिछड़ों के बीच नेतृत्व को लेकर लड़ाई तो कांग्रेस में आपसी गुटबाजी का खेल। सब कुछ है उनकी आत्म़कथा में। लेकिन पूरी आत्मकथा के केंद्र में है देह।

हमने पहले कहा था कि पढ़ना मेरे स्वभाव में नहीं है। इस पुस्तक को पढ़ने का मुख्य कारण बिहारी राजनीति की घटनाओं का होना है, बिहारी नेताओं के चरित्र आख्‍यान होना ही है। पूरी पुस्तक देह के आसपास ही घुमती है, लेकिन उसके साथ जीवन के तमाम पहलुओं, अपेक्षाओं, विवशताओं को समटने का जीवंत प्रयास है ‘आपहुदरी’।

रमणिका गुप्ता ने अपनी देहयात्रा के साथ ही बिहार की राजनीति को पढ़ने, गढ़ने और ढहने की पूरी दास्तान लिखी है। विचारधारा से लेकर सत्ता के लिए समझौता, तिकड़म का गुना-भाग की चर्चा है। कांग्रेस, सोशलिस्ट, जनसंघ के कार्यकर्ताओं और नेताओं के व्यवहार को लेकर भी लिखा है। खावड़ा की यात्रा की चर्चा में उन्होंने लिखा है कि ' पुलिस ने हमें उठाकर बस में चढ़ाने की चेष्टा की, लेकिन मैंने तय किया था कि आसानी से नहीं चढ़ूंगी। जनसंघ वाले तो पुलिस के आते ही धरती छूकर प्रणाम करते, नारा लगाते और पुलिस के हाथ लगाने से पहले ही बस में चढ़ जाते थे।'

रमणिका गुप्ता की संघर्ष यात्रा भी कम रोचक नहीं है। कांग्रेस में यौन प्रताड़ना से त्रस्त होकर वे सोशलिस्ट पार्टी में आयी थीं। लेकिन समाजवादी दालान में भी उन्हें वही सब झेलना पड़ा। इन सबके बावजूद वे लगातार अपनी राह चलती रहीं। वह जहां भी गयीं, वहीं देह का सहयात्री तलाश लेती थीं। लेकिन अपने संघर्ष की राह को कभी नहीं छोड़ा। धनबाद में गॉडफादर से दुश्मनी मोल लेना हो या गुजरात की यात्रा में सत्ता से टकराने का साहस, वे अकेले भी लड़ने और चलने का तैयार थीं, चलती रहीं।

पुस्तक में स्त्री -पुरुष का संबंध, स्त्री का आत्म संघर्ष या आत्मभ्रम, देह का अर्थशास्त्र, सत्ता के लिए समर्पण, भेडि़ए से बचने के लिए शेर से दोस्ती के साथ जीवन की विविध पहलुओं की चर्चा है। उन्होंने घटनाओं का स्पष्ट विवरण रखा है। कोई लाग-लपेट नहीं। शब्दों का खेल, भावनाओं की कलाबाजी और खुद को केंद्र में बनाए रखने की भूख सबकुछ पुस्तक में है। राजनीति के लिए इन घटनाओं का होना नया नहीं है, अप्रत्याशित नहीं है। राजनीति के गलियारे में नेताओं की सेक्स कथा तैरती रहती है। रमणिका गुप्ता ने उन कथाओं को शब्दबद्ध किया है। आत्मानुभव है। संबंधित व्यक्ति के नाम, जगह, पार्टी के साथ भावनाओं का पोस्टमार्टम भी खूब हुआ है। यही इस पुस्तक की ताकत है और पठनीयता भी। आपहुदरी के पहले भाग के अंतिम पाराग्राफ में रमणिका ने लिखा है कि ' धनबाद आकर मैंने एक पौधा देखा, जिसका नाम था थे‍थर। कभी मरता ही नहीं वह पौधा। उसे जहां भी फेंक दो, वहीं उग आता है, बढ़ जाता है। मैं उसकी तरह हर जगह उगने, जीने की क्षमता हासिल कर औरत को नंगा करने वालों के मुकाबिल लड़ूंगी। औरत की पहचान को जिंदा रखूंगी।' 



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