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अगर आज कलाम साहब जीवित होते तो बिहार के इस काम से सबसे ज्यादा खुश होते

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:15:26:13 PM / Sun, Sep 18th, 2016 | Updated Date: Fri ,10 Feb 2017 10:02:37 am


करीब 833 साल बाद फिर बिहार का नालंदा इतिहास दोहरा रहा है।  पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अगर आज जीवित होते तो शायद अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल भी होते और सबसे ज्यादा खुश होते।

करीब 833 वर्ष पूर्व आक्रमणकारियों के हाथों तबाह हुए विश्वविद्यालय का नया स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के पहले बैच के देशी विदेशी छात्र यहां से डिग्री लेकर जा रहे हैं।पहले सत्र में 13 छात्रों का एडमिशन हुआ था, इसमें एक जापान और एक भूटान का छात्र भी शामिल थे। पहले सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट की पढ़ाई शुरू हुई। अगले सत्र से बुद्धिस्ट स्टडीज कम्प्रेटिव रिलिजन एंड फिलॉसफी के अलावा लिंग्विस्टिक्स एंड लिटरेचर की पढ़ाई शुरू होने वाली है।

करीब 833 साल बाद फिर बिहार का नालंदा इतिहास दोहरा रहा है।  पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अगर आज जीवित होते तो शायद अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में शामिल भी होते और सबसे ज्यादा खुश होते।

करीब 833 वर्ष पूर्व आक्रमणकारियों के हाथों तबाह हुए विश्वविद्यालय का नया स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय के पहले बैच के देशी विदेशी छात्र यहां से डिग्री लेकर जा रहे हैं।पहले सत्र में 13 छात्रों का एडमिशन हुआ था, इसमें एक जापान और एक भूटान का छात्र भी शामिल थे। पहले सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट की पढ़ाई शुरू हुई। अगले सत्र से बुद्धिस्ट स्टडीज कम्प्रेटिव रिलिजन एंड फिलॉसफी के अलावा लिंग्विस्टिक्स एंड लिटरेचर की पढ़ाई शुरू होने वाली है।

2007 में केन्द्र सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की उपस्थिति में मेंटर ग्रुप का गठन किया था, जिसमें चीन, सिंगापुर, जापान और थाईलैंड के प्रतिनिधि शामिल थे। अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी से विश्वविद्यालय को विकसित किया जाना तय किया गया था। बाद में मेंटर ग्रुप ही विश्वविद्यालय का गवर्निंग बॉडी बन गया।

इसी क्रम में जापान, सिंगापुर ने अपनी ओर से मदद दी। इसकी स्थापना पर 16 देशों की सहमति बनी। 2007 में फिलिपींस में इस्ट एशिया समिट में डॉ. कलाम की सोच 16 देशों के बीच सार्वजनिक हुए थे। इसमें रिवाइवल ऑफ नालंदा पर बहस हुई थी। 2010 को संसद में ऐक्ट पास हुआ। राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। 21 सितम्बर 2010 को राष्ट्रपति ने इस पर अपनी सहमति दे दी और 25 नवम्बर को यह विश्वविद्यालय अस्तित्व में आ गया।

फरवरी 2011 में डॉ. गोपा सभरवाल कुलपति नियुक्त की गई। इसके लिए राजगीर के पिलकी मौजा में 442 एकड़ जमीन अधिग्रहण किया गया। अगस्त 2008 में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम इस साइट को देखने आए। सितम्बर 2014 को विश्वविद्यालय में पढ़ाई शुरू हुई। 19 सितम्बर को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शैक्षणिक सत्र की विधिवत शुरुआत की थी। पहले सत्र में 13 छात्रों का एडमिशन हुआ था, इसमें एक जापान और एक भूटान का छात्र भी शामिल थे। पहले सत्र में स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज और स्कूल ऑफ इकोलॉजी एण्ड एनवायरमेंट की पढ़ाई शुरू हुई। अगले सत्र से बुद्धिस्ट स्टडीज कम्प्रेटिव रिलिजन एंड फिलॉसफी के अलावा लिंग्विस्टिक्स एंड लिटरेचर की पढ़ाई शुरू होने वाली है।

एकेडमिक नहीं शोध केन्द्र के रूप में हो रहा विकास
इस यूनिवर्सिटी का इस तरह विकास किया जा रहा है कि यहां से एकेडमिक पढ़ाई हो, बल्कि शोध केन्द्र के रूप में विकसित हो। इसे विश्व का सबसे यूनिक शोध केन्द्र बनाए जाने की योजना पर काम चल रहा है।

कुलपति डॉ. गोपा सभरवाल ने बताया कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को केन्द्र में रखकर इस नये विश्वविद्यालय का विकास किया जा रहा है। यहां की सारी व्यवस्था अपने आप में पूरी दुनिया के लिए यूनिक होगी।



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