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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:19:02:02 PM / Sun, Jul 24th, 2016 | Updated Date:normal
रहम करो. नवादा और शेखपुरा के आठ पहाड़ खत्म
बिहार में पहाड़ों की माइनिंग फिर से शुरू हो गयी है. वैध-अवैध माइनिंग से पहाड़ों का बड़ा हिस्सा पहले ही कट चुका है. इस साल अप्रैल में खान विभाग की हुई समीक्षा बैठक में माना गया कि अवैध माइनिंग के बारे में जिलों से आनेवाली रिपोर्ट अत्यंत निराशाजनक है.
सासाराम के अमरा में पहाड़ तो कटे ही, उसके नीचे की गहराई खतरनाक स्तर तक पहुंच गयी. यही नहीं, कई जगहों पर जमीन के नीचे इस कदर पत्थर काटे गये कि वहां वाटर लेवल छू गया. पहाड़ काटने का सबसे खराब असर यह रहा कि कई जिलों में वर्ष 2008 से कम बारिश हो रही है. नवादा, शेखपुरा और सासाराम में पहाड़ों का हाल जानने के लिए पढ़िए खास रिपोर्ट.
अजय कुमार
पटना : जैसे पानी खत्म होता जा रहा है, वैसे ही पहाड़ भी खत्म हो रहे हैं. सासाराम, नवादा और शेखुपरा की कई पहाड़ियां वैध-अवैध माइनिंग से या तो खत्म हो गयीं या आने वाले दिनों में खत्म हो जायेंगी. हजारों साल से खड़े पहाड़ों के शिखर विलीन हो चुके हैं. धरती के नीचे पत्थरों की कटाई होने से वहां दैत्याकार गड्ढे बन गये हैं. इन इलाकों की कई पहाड़ियां अब स्मृतियों में ही बची हैं.
पहाड़ों की अपनी पहचान है. उनके नाम हैं. नवादा के रजौली में सप्तऋषि पहाड़ी है, तो शेखपुरा में महाभारतकालीन गिरिहिंडा की पहाड़ी. ऐसी मान्यता है कि हिडिंबा का पुत्र घटोत्कच का वास इसी पहाड़ी पर था. भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक दंतकथाएं यहां प्रचलित हैं.
यहां की बुधैली पहाड़ी के बारे में मान्यता है कि भगवान बुद्ध जब गया से विक्रमशिला की ओर जाने लगे, तो वह इसी पहाड़ी पर रुके थे. उन्होंने ग्रामीणों को उपदेश दिया था. आधुनिक इतिहास में शेरशाह से जुड़ा शेखपुरा के बरूही पहाड़ का एक हिस्सा अब झील में बदल चुका है. इसे ग्वालिन खान की पहाड़ के नाम से जाना जाता था.
कहां कौन पहाड़ खत्म होने के कगार पर : कुछ साल पहले तक नवादा के शहरी हिस्से से पथरा इंगलिश का पहाड़ दिखता था. इसे स्थानीय लोग गुनी पहाड़ के नाम से जानते हैं. अब वहां पहाड़ का टीला बचा है. बड़ी-बड़ी मशीनें उस टीले को भी ढाहने में लगी हैं. उससे निकले पत्थरों को तोड़कर गिट्टी बनाया जा रहा है. हाइवा से गिट्टी की ढुलाई की जा रही है. ये गाड़ियां कतार में लगी हैं. गाड़ियों में ईंधन के लिए यहां दो-दो पेट्रोल पंप चल रहे हैं.
इस जिले के रजौली में लोमस ऋषि के नाम पर खड़ा पहाड़ कब तक बचेगा, कोई नहीं जानता. इस पहाड़ का बड़ा हिस्सा कट चुका है और वहां विशाल गड्ढा बन गया है. यहीं की तुंगी पहाड़ अब इतिहास बनने को है.इसी तरह शेखपुरा के चकंदरा, हसनगंज, सुदासपुर, बरूही और नीरपुर के पहाड़ खत्म हो चुके हैं. हसनगंज में पहाड़ कटने से जो जमीन निकली, उस पर एक सरकारी भवन का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है. चकंदरा पहाड़ का एक हिस्सा इसलिए बचा है कि उसके शिखर पर एक धर्म से जुड़ा स्थान है. यहीं के बरारी गांव के हरि मांझी कहते हैं: कुछ साल पहले पहाड़ काटने के लिए हुए ब्लास्ट में मेरे पिता का हाथ टूट गया था. इस गांव के मवेशी अब पहाड़ पर नहीं चढ़ते, क्योंकि खनन के चलते उसका रास्ता नहीं बचा.
बंदी के बाद लीज फिर शुरू : पहाड़ों की माइनिंग के लिए 2015 से 2020 तक लीज देने की प्रक्रिया फिर शुरू हुई है. नवादा में 17 ब्लॉक में कुल 86 एकड़ पहाड़ लीज पर दिये गये हैं. शेखपुरा में 30 ब्लॉक में 375 एकड़ पहाड़ की माइनिंग होनी है. पर अब तक 13 ब्लॉक की बंदोबस्ती का काम पूरा हो पाया है. सासाराम में फॉरेस्ट व माइनिंग डिपार्टमेंट के बीच सहमति नहीं बन पाने के चलते लीज के लिए टेंडर नहीं निकल पाया है. लीज की नयी शर्तों के मुताबिक जिसका सालाना टर्न ओवर तीन करोड़ होगा, वही व्यक्ति या कंपनी टेंडर में हिस्सा लेंगे.
इसके चलते शेखपुरा में 13 ब्लॉक ही लीज पर दिये जा सके हैं. उसमें भी केवल सात ब्लॉक में माइनिंग शुरू हुई है. टेंडर में भागीदारी बढ़ाने के लिए डिपॉजिट मनी घटा कर आठ करोड़ किया गया है, जबकि इसके पहले एक करोड़ प्रति एकड़ के हिसाब से लीज की दर तय थी. पत्थर कारोबारी संतोष कुमार कहते हैं, इससे सरकार के रेवेन्यू में कमी तो हुई ही, कम पूंजी वाले स्थानीय कारोबारी इस धंधे से बाहर हो गये. नयी व्यवस्था के अनुसार, एक ब्लॉक में खनन का क्षेत्र बढ़ाकर 12.5 एकड़ कर दिया गया है.
अवैध खनन से अथाह पैसा : प्राकृतिक संसाधनों की लूट से इन इलाकों में कई लोग अचानक धनवान बन गये. इनमें कई राजनेता, बिचौलिए, कारोबारी और सरकारी नुमाइंदे शामिल हैं. सासाराम से लेकर नवादा और शेखपुरा में पहाड़ से आये पैसे ने समृद्धि के कई टापू खड़े कर दिये. मुट्ठी भर ऐसे ही लोग पहाड़ों को काटने के समर्थन में सड़क से कोर्ट तक सक्रिय रहे हैं.
अब भी चल रहा अवैध खनन
सासाराम : सासाराम में पहाड़ की माइनिंग के लिए 2010 से ही लीज नहीं है, पर वहां इस संवाददाता ने देखा कि दिन में करबंदिया पहाड़ी पर ब्लास्ट किये जा रहे हैं. क्रसर से पत्थर तोड़े जा रहे हैं. जीटी रोड पर दौड़ते गिट्टी लदे ट्रक पहाड़ नहीं कटने के दावों की हकीकत बता देते हैं.
यहां के पत्थर की क्वालिटी काफी अच्छी मानी जाती है. एक अनुमान के मुताबिक, करबंदिया पहाड़ के पांच सौ एकड़ क्षेत्र की चट्टानें साफ हो चुकी हैं. इसी क्षेत्र में डीएफओ संजय सिंह की फरवरी, 2002 में हत्या कर दी गयी थी, तो 2011 में तत्कालीन एसपी मनु महाराज पर हमला किया गया. पत्थर माफियाओं की सक्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बीते पांच साल में 700 लोगों को पकड़ा गया. 2500 पर प
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