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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Mon ,03 Apr 2017 06:04:50 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो : लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद विपक्षी पार्टियों ने 2019 में बीजेपी को रोकने के लिए अभी से रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। भाजपा के विजयरथ को रोकने के लिए अधिकतर सपा नेताओं का मानना है कि चुनाव पूर्व सपा-बसपा का गठबंधन हो जाना चाहिए। इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के मुताबिक सपा के कई दिग्गज नेता यहां तक कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी यही मानते हैं कि बीजेपी के हाथों लगातार दो हार के बाद सपा को बसपा के साथ हाथ मिला लेना चाहिए।
सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे एक मुस्लिम नेता ने ईटी को बताया कि यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद सपा-बसपा गठबंधन मजबूरी है। स्वंय अखिलेश यादव द्वारा गठित की गई सपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के तीन बड़े सदस्यों का मानना है कि दोनों पार्टियों (सपा-बसपा) के लिए गठबंधन बहुत जरूरी है।
बसपा नेताओं ने भी जताई गठबंधन की इच्छा
हालांकि कई सपा नेता मायावती के राजनीति करने के तरीके को लेकर काफी सजग हैं। खबर के मुताबिक एक वरिष्ठ सपा कार्यकर्ता का कहना है कि-समस्या यह है कि मायावती के मन को कोई नहीं जानता। खबर के मुताबिक ज्यादातर बसपा नेताओं का भी यही मानना है कि सपा-बसपा गठबंधन होना चाहिए। हालांकि सपा नेताओं के विपरीत बसपा नेता चुनावी पराजय के बाद मायावती के दृष्टिकोण के बारे में कोई आभास न मिलने पर राजनीतिक भविष्य को लेकर चुप्पी साधे बैठे हैं।
सपा ने आधिकारिक तौर पर बसपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन बनाने के लिए कोई इशारा नहीं दिया है। लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच इसको लेकर कोलाहल की स्थिति है। हालांकि 1995 का गेस्ट हाउस कांड सपा-बसपा को एक साथ लाने से रोक सकता है। लेकिन सपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों का मानना है कि अखिलेश यादव के नेतृत्व के साथ मायावती तालमेल बिठाने के बारे में सोच सकती हैं। भाजपा द्वारा योगी आदित्यनाथ को यूपी का सीएम बनाकर हिंदू कार्ड खेले जाने के बाद से ही सपा-बसपा गठबंधन के कयास लगाए जाने लगे।
हालांकि सपा नेताओं का मानना है कि सपा-बसपा गठबंधन का पहला संकेत अगले साल मायावती की राज्यसभा सदस्यता के खत्म होने के बाद देखा जा सकता है। क्योंकि बसपा के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं है जो मायावती को दोबारा राज्यसभा भेज सके। माना जा रहा है कि सपा मायावती को अपने बल पर राज्यसभा भेज सकती है। जो दोनों पार्टियों के गठबंधन का पहला संकेत हो सकता है।
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