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By समाचार नाउ ब्यूरो | Publish Date: Sun ,30 Dec 2018 07:12:09 pm |
समाचार नाउ ब्यूरो- मेरे प्यारे देशवासियो, 13 जनवरी गुरु गोबिंद सिंह जी की जयन्ती का पावन पर्व है। गुरुगोबिंद सिंह जी का जन्म पटना में हुआ। जीवन के अधिकांश समय तक उनकी कर्मभूमि उत्तर भारत रही और महाराष्ट्र के नांदेड़ में उन्होंने अपने प्राण त्यागे। जन्मभूमि पटना में, कर्मभूमि उत्तर भारत में और जीवन का अंतिम क्षण नांदेड़ में। एक तरह से कहा जाए तो पूरे भारतवर्ष को उनका आशीर्वाद प्राप्त हुआ। उनके जीवन-काल को देखें तो उसमें पूरे भारत की झलक मिलती है। अपने पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के शहीद होने के बाद गुरुगोबिंद सिंह जी ने 9 साल की अल्पायु में ही गुरु का पद प्राप्त किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी को न्याय की लड़ाई लड़ने का साहस सिख गुरुओं से विरासत में मिला। वे शांत और सरल व्यक्तित्व के धनी थे, लेकिन जब-जब,ग़रीबों और कमजोरों की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया गया, उनके साथ अन्याय किया गया, तब-तब गुरु गोबिन्द सिंह जी नेगरीबों और कमजोरों के लिए अपनी आवाज़ दृढ़ता के साथ बुलंद की और इसलिए कहते हैं –
“सवा लाख से एक लड़ाऊँ,
चिड़ियों सों मैं बाज तुड़ाऊँ,
तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ।
वे कहा करते थे कि कमज़ोर तबकों से लड़कर ताकत का प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। श्री गोबिन्द सिंह मानते थे कि सबसे बड़ी सेवा है मानवीय दुखों को दूर करना। वे वीरता, शौर्य, त्याग धर्मपरायणता से भरे हुए दिव्य पुरुष थे, जिनको शस्त्र और शास्त्र दोनों का ही अलौकिक ज्ञान था। वे एक तीरंदाज तो थे ही, इसके साथ-साथ गुरूमुखी, ब्रजभाषा, संस्कृत, फारसी, हिन्दी और उर्दू सहित कई भाषाओं के भी ज्ञाता थे। मैं एक बार फिर से श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी को नमन करता हूँ
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