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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Mon ,20 Feb 2017 07:02:29 pm | Updated Date: Mon ,20 Feb 2017 07:02:05 pm
समाचार नाऊ ब्यूरो : बम धमाकों में लोगों की जान लेने वालों पर सख्ती दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसे गंभीर अपराध के जरिए निर्दोष लोगों की हत्या करने वालों के लिए बेहतर है कि वे अपने परिवार से रिश्तों को भूल जाएं। ऐसे लोगों को अंतरिम जमानत या पैरोल नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के लाजपत नगर में 21 मई, 1996 को हुए बम धमाके में सजायाफ्ता मोहम्मद नौशाद की अंतरिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणी की।
दोषी नौशाद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अपनी बेटी की शादी में शामिल होने के लिए एक महीने के लिए अंतरिम जमानत की याचिका दाखिल की थी। याचिका में नौशाद की ओर ये कहा गया था कि वह 14 जून, 1996 से ही जेल में बंद है और उसे अब तक 20 साल से ज्यादा वक्त हो चुका ह। 28 फरवरी को उसकी बेटी की शादी है जिसमें उसे शामिल होने की इजाजत दी जाए। याचिका में कहा गया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने खुद कहा था कि उसके खिलाफ कोई सीधे सबूत नहीं हैं लेकिन उसे दोषी करार दिया था और इस मामले में मास्टरमाइंड कहे जाने वाले दोनों आरोपी बरी हो चुके हैं।
इस मामले में कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मांगी थी और पुलिस ने कहा कि ये बात सही है कि 28 फरवरी को उसकी बेटी की शादी है। लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश खेहर की बेंच ने अंतरिम जमानत देने से इंकार करते हुए कहा कि निर्दोष लोगों की जान लेने वाले आतंकी को पारिवारिक जरूरतों के लिए भी अंतरिम जमानत पैरोल नहीं मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि बेहतर है कि वे परिवार से रिश्तों को भूल जाएं। नौशाद को 14 जून, 1996 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उसके पास से विस्फोटक भी बरामद किए थे।
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