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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,16 Feb 2017 06:02:14 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - राजद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और महागठबंधन के नेता कुख्यात शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भेजने का फैसला देकरहै कि शहाबुद्दीन जैसे सत्ता संरक्षित अपराधी को वहां रख कर उसके मामले की निष्पक्ष सुनवाई कराई जा सके। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नीतीश कुमार के कथित सुशासन और का सुप्रीम कोर्ट ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि बिहार में कानून-व्यवस्था की ऐसी स्थिति नहीं नून के राज की एक बार फिर हवा निकल गई है।
सीवान जेल में रहते चंदा बाबू के तीसरे बेटे की हत्या कराने, गवाहों को धमकाने, आतंक कायम रखने और जेल में दरबार लागने जैसे संगीन आरोपों के बावजूद लालू प्रसाद के दबाव में नीतीश सरकार नहीं चाहती थी कि शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल भेजा जाए। इसलिए इससे संबंधित याचिका पर सरकार ने अपना कोई स्पष्ट मंतव्य नहीं दिया और चुप्पी साधे रही। इसके पहले हाईकोर्ट में जहां राज्य सरकार ने शहाबुद्दीन को बेल दिलाने में मदद की वहीं सुप्रीम कोर्ट में उसकी बेल को निरस्त कराने के लिए प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण की पहल का इंतजार करती रही।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अगर नीतीश कुमार में साहस है तो लालू प्रसाद पर दबाव बना कर कई संगीन मामलों में सजायफ्ता शहाबुद्दीन को राजद से निष्कासित करायें और जेल में शहाबुद्दीन से मिलने व दरबार लगाने वाले मंत्री अब्दुल गफूर के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही शहाबुद्दीन से जुड़े तीन साल से बंद पड़े सभी मामले की ट्रायल शुरू करायें।
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