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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:14:10:20 PM / Sun, Aug 14th, 2016 |
37 वीर शहीदों के परिजन 43 साल से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं
सन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में देश के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले 37 वीर शहीदों के परिजन 43 साल से अपने हक के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन, आज भी शहीदों की वीरांगनाएं अपने वाजिब हक से वंचित हैं।
वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध में तत्कालीन शाहाबाद (अब भोजपुर, बक्सर, रोहतास, कैमूर जिले) के 37 जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे। केंद्र सरकार के सुझाव पर बिहार सरकार द्वारा वर्ष 1973 में शहीदों के परिजनों के लिए आवास निर्माण, 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि व 12 डिसमिल घर योग्य भूमि आवंटन का प्रस्ताव पारित हुआ था। लेकिन, 5 एकड़ कृषि योग्य भूमि व 12 डिसमिल घर योग्य भूमि सिर्फ दो शहीद के परिजनों को ही मिला है। 35 शहीदों के परिजन आज भी अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।
प्रस्ताव के मुताबिक शाहाबाद के मुख्यालय, आरा में 10 फ्लैट का निर्माण कराया गया। सभी फ्लैट 10 शहीदों के परिजनों को सौप दिया गया। बाकी बचे 27 शहीदों के परिजनों को पटना में बने फ्लैट आवंटित किये गए। वहां सबसे निचले तल्ले पर घायल सैनिकों के परिजन। प्रथम तल्ले पर अफसर व द्वितीय तल्ले पर शहिदों के परिजनों को आवास आवंटित किये गए। लेकिन, सरकार ने वायदे के अनुसार 5 एकड़ जमीन कृषि के लिए और 12 डिसमिल जमीन घर बनाने के लिए नहीं दिया। इसके लिए शहीद के परिजन सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाकर थक गए। अब शहिदों की विधवाएं सरकारी तंत्र के निकम्मेपन पर सिर्फ आंसू बहाती हैं। पूछने पर उनके जबान से एक शब्द भी नहीं निकल पाते। बहुत हिम्मत कर सिर्फ इतना ही कहती हैं कि अब जिन्हें जाना था वे तो चले गए सरकार घर या जमीन दे या ना दे। अब हमें नहीं चाहिए।
लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। जिससे वीरगति प्राप्त सैनिक जिले में पहचान को मोहताज हैं। फ्लैट परिसर की चहारदीवारी व मुख्य द्वार बनाने के लिए भी परिजन दौड़ लगा रहे हैं। अभी चहारदीवारी का निर्माण नहीं कराया गया है। ऐसे में शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले.... वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
जब इंदिरा गांधी थी तो शहीद के परिजनों को बुलाकर समय- समय पर सम्मानित करती थी। लेकिन, अब तो कोई नहीं पूछता। सेना में भी सम्मान उन्ही को मिलता है जो अफसरों के आसपास रहते हैं। शहादत के सही मायने सरकार नहीं समझ रही है। वीरों की आत्मा को सरकारी उदासीनता से बड़ा दुःख होता होगा। यहाँ स्मारक बना फिया जाता तो हम सब उनको श्रद्धा से नमन कर सकते थे। जिले में पहचान रहती।
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