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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:15:30:26 PM / Sat, Jun 25th, 2016 |
25 जून, 1975 की मध्य रात्रि काे देश में आपातकाल लगा था. इंदिरा गांधी उस समय देश की प्रधानमंत्री थी. आपातकाल (इमरजेंसी) लगने के तुरंत बाद राताें-रात जयप्रकाश नारायण (जेपी) समेत तमाम बड़े नेताआें काे गिरफ्तार कर लिया गया था. आपातकाल के दाैरान रघुवर दास भी गिरफ्तार कर जेल भेजे गये थे. लंबे समय तक वह जेल में थे. आपातकाल के अनुभव आैर घटनाआें काे याद करते हुए उन्हाेंने यह लेख लिखा है.
26 जून आते ही मुझे उस घटना का स्मरण हो उठता है. तब मेरी उम्र 20 वर्ष थी और मैं आइएससी में पढ़ता था. 25 जून को मध्य रात्रि के करीब हमलोग भालूवासा किशोर संघ के मैदान में छात्र संघर्ष समिति का बांस का कार्यालय बना रहे थे. तभी एक सज्जन, जो साइकिल से साकची होते हुए बारीडीह की ओर जा रहे थे, उन्होंने रोक कर हमें बोला कि भागो, देश में इमरजेंसी लग गयी है, पुलिस पकड़ेगी.
उनकी बातों को सुन कर हमलोग आधा ऑफिस बना कर भाग खड़े हुए. आधे घंटे के अंदर ही पुलिस पहुंची और ऑफिस को तोड़ कर सारा सामान ले गयी. घर आकर हमलोगों ने रेडियो लिया. रेडियो पर समाचार आ रहा था कि देश में इमरजेंसी लग गयी है. 25 जून 1975 की आधी रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी. अपने खिलाफ उठ रहे असंतोष को दबाने के लिए लगायी गयी इमरजेंसी के उस दौर को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला युग माना जाता है.
सर्वश्री जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, आडवाणीजी, मोरारजी भाई, मधु लिमये, डॉ जोशी सरीखे नेताओं को नजरबंद कर दिया गया. विपक्ष की आवाज दबा दी गयी. प्रेस पर सेंसर लगा दिया गया. राष्ट्रीय, प्रांतीय और जिला स्तर पर विपक्षी नेताओं की बड़ी पैमाने पर गिरफ्तारियां शुरू हो गयी. मैं भी अंडरग्राउंड हो गया.
अंडरग्राउंड होकर लोगों को संगठित कर आंदोलन चलाने लगा. पर छह जुलाई को रात्रि दो बजे मुझे गिरफ्तार कर लिया गया. उस दिन काफी बारिश हो रही थी. मैं दूसरे के घर पर सोया था. सोचा काफी बरसात हो रही है, पुलिस नहीं आयेगी. लेकिन पुलिस की सूचना इतनी तेज थी कि रात दो बजे घर पहुंच गयी और कहा कि चलो जेपी से जेल में मिलते हैं. मैं स्वयं तैयार हो गया और कहा चलो.
मुझे डीआइआर के तहत गिरफ्तार कर सुबह जमशेदपुर जेल भेज दिया गया. जेल में पहुंचने पर देखा कि विभिन्न पार्टियों के राजनीतिक कार्यकर्ता को बड़ी संख्या में गिरफ्तार कर लाया गया है़
इनमें दीनानाथ पांडे, रामदत्त सिंह, सर्वोदय आंदोलन के अयूब खान, जमाते इसलाम जैसे विपक्षी दल के लोगों के साथ अनेक छात्र नेता भी थे. जेल के अंदर भी हमलोग आंदोलन करने लगे. रोज शाम नारे लगाते थे कि जेल का फाटक टूटेगा और जयप्रकाश नारायण छूटेगा. जेल में हमलोग राजनीतिक कैदी के तहत पूरी सुविधा चाहते थे. अंत में जिला प्रशासन ने हमलोगों को 14 अगस्त की रात आठ बजे सेंट्रल जेल भेज दिया. जेल के सभी राजनीतिक बंदियों को बस से गया जेल भेज दिया गया. गया पहुंचते ही हमें अलग-अलग सेल में रखा गया. संकूल जेल होने के कारण कुछ सुविधाएं मिली. वहां भी हमलोगों ने आंदोलन किया कि सभी छात्रों को दूध दिया जाये.
नौबत ऐसी आ गयी कि एक बार पगली घंटी बजी. कुछ छात्रों को पीटा भी गया. उस समय जेल में विपक्षी दल के प्रांतीय स्तर के काफी नेता बंद थे. हजारीबाग के डॉ बसंत नारायण सिंह भी जेल में बंद थे. जेल के अंदर ही जन संघर्ष समिति बनी, जिसके अध्यक्ष डॉ सिंह को बनाया गया. जेल में एक साथ रहने से हम सभी को अपनी अपनी विचारधाराओं पर खुल कर चर्चा करने का अवसर मिला और एक दूसरे के प्रति संदेह को दूर करने का मौका भी मिला. आरएसएस के बारे में भी विभिन्न राजनीतिक दलों में फैली गलतफहमियों को दूर करने में मदद मिली.
संघ को मुसलमानों का दुश्मन बताये जाने की कांग्रेस की कोशिशों की कलई खुल गयी. जमाते इसलाम के मुसलिम समुदाय के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जब स्वयं देखा कि संघ के लोग कितने सहयोगी और मानवीय हैं, तो वे चकित रह गये. नमाज के समय संघ के कार्यकर्ता उनके साथ पूरा सहयोग करते. संघ के लोग रमजान के पाक महीने में रात के दो बजे उठ जाते और जेल में बंद मुसलमान भाइयों के लिए सेहरी पकाते. जमाते इसलाम के कार्यकर्ता भी जेल के अंदर सभी आयोजनों में हिस्सा लेते थे.
डीआइआर केस में बेल मिलने का जब प्रावधान हुआ, तब जाकर जमशेदपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता एके सरकार ने जमशेदपुर के हम सभी छह छात्रों का बेल मूव किया. न्यायालय ने हमलोगों को बेल दिया. नवंबर महीने में मैं गया जेल से रिहा हुआ. घर आते ही पुलिस ने फिर छापेमारी शुरू कर दी, मीसा के तहत गिरफ्तार करने के लिए. मैं फिर से भूमिगत हो गया. सावधानी रखते हुए कांग्रेस का विरोध, पत्रिका बांटने, लोगों व छात्रों को गोलबंद करने का काम करता रहा और पुलिस से बचता रहा.
अंत में 1977 में यह काला अध्याय समाप्त हुआ. इमरजेंसी उठा ली गयी. 1977 में जनता लहर चली. कांग्रेस का उत्तरी भारत से सफाया हो गया. जेपी की देख-रेख में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी (संगठन कांग्रेस, जनसंघ, लोक दल जैसे विपक्षी दल का विलय) की सरकार बनी.
भारतीय राजनीति में आज के ज्यादातर नेता (कांग्रेस के खेमे के नेताओं को छोड़ कर) उसी दौर की उपज हैं. मैं भी उसी दौर की उपज हूं. इन सभी ने इमरजेंसी में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. इन लोगों ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संघर्ष किया. इस संघर्ष ने उनकी तकदीर तय कर दी और वे आज की राजनीति में महत्वपूर्ण जगहों पर हैं. यह भी सही है कि कई नेता राह से भटक गये हैं. कई के खिलाफ तो भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगे है
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