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भारतीय राजनीति की वंश बेल 1
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समाचार नाउ ब्यूरो | Publish Date:18:30:59 PM / Fri, Jan 1st, 2016 |
भारतीय राजनीति में वंशवाद नई बात नहीं है लेकिन पूरी राजनीति सिर्फ वंश के इर्द गिर्द सिमट जाए तो फिर योग्यता और निष्ठा के प्रश्न खड़े हो जाते हैं। सवाल इसलिए भी खड़ा हो जाता है कि कई बार वंशवाद की ये बेल राजनीतिक दलों में योग्य प्रतिभाओं और अच्छे विकल्पों की राह में रोड़े बनकर खड़ी हो जाती है।
कई राजनीतिक दल इसका उदाहरण भी हैं। बीते लोकसभा चुनावों में करारी हार के बावजूद कांग्रेस आज तक गांधी परिवार की छाया से उबरने की हिमाकत नहीं कर पाई है तो उत्तर प्रदेश में पूरी राजनीति ही मुलायम कुनबे के इर्द गिर्द सिमट गई है।
मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और छह सांसदों वाला ये परिवार शायद देश का सबसे समृद्ध राजनीतिक परिवार है। एक अनुमान के मुताबिक मुलायम परिवार के कम से कम 15 सदस्य सक्रिय राजनीति में विभिन्न पदों पर काबिज हैं। आलम ये है कि मुलायम की चौथी पीढ़ी भी राजनीति में आने को तैयार बैठी है। हाल ही में खबर ये भी आई है कि बंदायू से सांसद धर्मेन्द्र यादव की बहन को भी जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए दावेदार बना दिया गया है।
मतलब साफ है कि यूपी की राजनीति में मुलायम परिवार की ये बेल अभी और भी लंबी होगी। आइए एक बार निगाह डालते हैं देश के दिग्गज राजनीतिक परिवारों और उनके सदस्यों पर।
राजनीतिक दल में परिवार की बात करें तो सबसे पहला नाम जेहन में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की सत्ता पर काबिज नेहरू-गांधी परिवार का ही आता है।
शुरूआत जवाहर लाल नेहरू के देश का पहला प्रधानमंत्री बनने से हुई तो उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने भी देश की बागडोर संभाली। इंदिरा की मौत के बाद उनके बेटे राजीव गांधी ने पार्टी और देश पर शासन किया।
राजीव की मौत के बाद सोनिया गांधी राजनीति में आई तो मात्र दो महीनों में ही कांग्रेस की कमान उनके हाथों में आ गई। वो खुद सांसद बनी तो उनके बेटे राहुल गांधी भी संसद की चौखट तक पहुंचे। चर्चा उनकी बेटी प्रियंका गांधी के भी राजनीति में आने की चली क्योंकि कांग्रेसियों को उनमें पूर्व प्रधानमंत्री और अपनी दादी इंदिरा गांधी की झलक दिखती थी लेकिन ये मामला चर्चाओं से आगे नहीं बढ़ सका।
हालांकि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा जरूर गाहे बगाहे सक्रिय राजनीति में आने का संकेत दे चुके हैं लेकिन कांग्रेस को शायद अभी उनकी सेफ लैंडिंग का इंतजार है
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