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श्राद्ध और तर्पण के मायने क्या- पंडित नरेन्द्र प्रसाद दूबे

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:14:44:48 PM / Sun, Sep 18th, 2016 |


*मृतक श्राद्ध v/s नानक देव और वेद*
                      श्राद्ध और तर्पण किनका करें ??? मृतकों या जीवितों का ||

मित्रों श्रद्धा से जो काम किया जाए उसे श्राद्ध कहते है और तृप्ति का नाम ही तर्पण है | अब प्रश्न ये उठाता है कि श्राद्ध और तर्पण किनका करा जाए मृतकों का या फिर जीवितों का ?
एक बार गुरू नानक देव जी भ्रमण करते हुए शिष्यों सहित तीर्थराज हरिद्वार गए | वहां उन्होनें देखा कि हजारों भावुक अन्ध विश्वासी श्रद्धालु लोग गंगा में खड़े होकर मरे हुए माता पिता आदि को पीनी द्वारा तर्पण व पिण्ड दान कर रहे हैं |नानक देव जी ने सोचा कि इन भोले लोगों कैसे समझाया जाय, अतः वे भी गंगा की धारा में खड़े होकर पंजाब की तरह मुहँ करके दोनों हाथों से गंगा का पानी फैंकने लगे |स्वयं से विपरीत दिशा में जल फैकते देख लोगों को आश्चर्य हुआ तो उन्होनें नानक देव जी से पूछा महाराज ! आप ये क्या कर रहे हैं ? सरल स्वभाव नानक बोले... "भाईयो, मैं अपने खेत को पानी दे रहा हूँ |"यह सुनकर सब लोग हंसे और नानक जी से कहने लगे... "महाराज इस प्रकार आपके खेतों में पानी पहुचना सम्भव है क्या ???तब महात्मा नानक देव जी बोले... "ओ भोले लोगों मेरा पानी मेरे पंजाब प्रान्त के खेतों में नहीं पहुँचेगा तो तुम्हारे मरे हुए माता पिता जो किस योनि में किस देश में और अपनेकर्मानुसार क्या फल भुगत रहे हैं, उन्हें तुम्हारा ये तर्पन पिण्ड दान कैसे पहुँचेगाA|
"अतः इस पर विचार करो और अपने जीवित माता पिता और गुरूजनों को श्रद्धा व भक्ति भाव से तृप्त करो तो तुम्हारा कल्याण होगा अन्यथा आप दुःख सागर में गोते ही खाते रहोगे |"

वेद (यजुर्वेद २/३४) भी इसी बात को ही कहते है कि...

"ओ३म् उर्ज वहन्तो अमृतं घृतं पयःकीलालं परिस्त्रुतम् | स्वधास्य तर्पयत मे पितृन् ||"

अर्थात्
         पितरों अर्थात् 'पिता पाता पालयिता वा' (नरूक्त) अर्थात् रक्षा व पालन करने वाले माता पिता आचार्य आदि जनों को प्रसन्नता पूर्वक तृप्त करो | दूध, उत्तमान्न, ऋतु के ताजा फल आदि देकर अपनी पवित्र कमाई से ही उनकी सेवा करो और धर्मानुकूल अर्थ के उपार्जन में दृढ़ रहो ||

गुरू ग्रन्थ साहिब (राग सेनो मुहल्ला २) में कहा गया है कि...

"दीवा बले अंधेरा जाये वेद पाठ मत पापां खाये |"

अर्थात् 
         जिस प्रकार दीपक जलने से अंधेरा दूर हो जाता है इसी तरह वेद को पढ़ना पढ़ाना, सुनना सुनाना बुध्दि के पापों को नष्ट कर देता है ||

अतः मित्रों वेद को मानो वेदानुसार चलों सन्त जन भी वेदों का ही समर्थन करते है | मृतक श्राद्ध रूपी पाखण्ड को त्याग कर नित्य प्रति माता पिता आचार्य आदि जनों की श्रद्धा पूर्वक सेवा करो | यही धर्म है |



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