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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,06 Dec 2018 11:12:36 am |
समाचार नाऊ ब्यूरो - रिमोटली पायलटेड एरियल सिस्टम (आरपीएएस), जिसे हम ड्रोन कहते हैं, वो व्यापक अनुप्रयोगों के आधार पर बना एक तकनीकी प्लेटफॉर्म है। अगस्त में भारत ने आरपीएएस की सुरक्षित उड़ान को सुनिश्चित करने के लिए नागरिक उड्डयन नियमन को जारी करने की घोषणा की थी। नागरिक उड्डयन नियमन में ऑपरेटर के दायित्व, रिमोट पायलट/उपयोग कर्ता और निर्माता/आरपीएएस के सुरक्षित संचालन और हवाई क्षेत्र के सहकारी इस्तेमाल को लेकर विस्तृत व्योरा दिया गया है। इस मौके पर अपने तरह के पहले डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म जिसमें नो परमिशन, नो टेक ऑफ (एनपीएनटी) की प्रक्रिया लागू है- जो कि सॉफ्टवेयर आधारित नागरिक उड्डयन नियमन का पालन कराने के लिए बनाई गई स्व निदेशित नई प्रणाली पर आधारित है। सभी नियमन 1 दिसंबर से प्रभाव में आएंगेस, ताकि इस क्षेत्र में लगे लोगों/ संस्थाओं को इसकी शुरुआत के लिए समय मिल जाए. आज से भारत में नैनो ड्रोन भी उड़ान की शुरुआत कर सकते हैं। माइक्रो और ऊपर की श्रेणियों के लिए संचालक और पायलट को डिजिटल स्काई पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा।
इस प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं का रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है। मानवरहित एरियल ऑपरेटर (यूएओपी) और यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर भारत कोश (bharatkosh.gov.in) पोर्टल के जरिए स्वीकार किए जाएंगे। उड़ान की अनुमति के लिए आरपीएएस ऑपरेटर या रिमोट पायलट को एक फ्लाइट प्लान देना होगा। ‘ग्रीन जोन’ में उड़ान भरने के लिए सिर्फ उड़ान की समय और जगह की जानकारी पोर्ट या ऐप के जरिए देनी होगी. ‘येलो जोन’ में उड़ान के लिए अनुमति लेना अनिवार्य होगा और ‘रेड जोन’ में उड़ान की अनुमति नहीं होगी. जोन के जगह की घोषणा जल्द की जाएगी। अगर अनुमति दी जाती है तो वो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगी. अगर आरपीएएस के पास उड़ान की अनुमति नहीं है तो नो परमिशन-नो टेक ऑफ नीति (एनपीएनटी) के तहत उसे उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी जाएगी. पोर्टल का ये पहलू भी जल्द ही लाइव होगा। जो अभी ड्रोन ऑपरेट कर रहे हैं उनसे आग्रह है कि वो अपने निर्माताओं से डीओटी के डब्ल्यूपीसी विभाग के जरिए एनपीएनटी- कंप्लायंट फर्मवेयर अपग्रेड एंड इक्वेपमेंट टाइप अप्रुवल ले लें। जो आने वाले दिनों में ड्रोन लेना चाहते हैं वो एनपीएनटी-कम्प्लायंट आरपीएएस खरीदें. डिजिटल स्काई वेबसाइट पर डब्ल्यूपीसी में संपर्क सूत्र भी दिए गए हैं। डीजीसीए ने सुरक्षित उड़ान के लिए अक्सर पूछे जाने वाले सवालों की सूची और क्या करें और क्या ना करें की एक सूची भी जारी की है।
एक विस्तृत दिशा निर्देश की सूची भी नवंबर में जारी की गई थी जो कि डीजीसीए की वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसमें एनपीएनटी अनुपालन के लिए तकनीकी विवरण भी दिया गया है जो कि निर्माताओं को अपने आरपीएएस को अपग्रेड करने में मदद करेगा। अब ड्रोन के आयात को भी मंजूरी दे दी गई है और डिजिटल स्काई वेबसाइट पर डीजीएफटी में संपर्क सूत्र भी दिया गया है।
डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म को तेजी से बदल रहे इस उद्योग की नई-नई जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। आने वाले महीनों में नई विशेषताएं भी जोड़ी जाएंगी जिससे उपयोगकर्ताओं के उड़ान की प्रक्रिया आसान होगी और सुरक्षा एजेंसियों को भी निरीक्षण में आसानी होगी। आगे भविष्य में इस सोच के साथ डिजिटल स्काई सर्विस प्रोवाइडर का विस्तार किया जाएगा जो कि एप्लिकेशन प्रोग्राम इंटरफेसेज (एपीआई) के जरिए कार्य करने में सक्षम हो सके। इस मौके पर नागरिक उड्डयन मंत्री भारत सरकार श्री सुरेश प्रभु ने कहा कि ड्रोन भविष्य का उद्योग है। ये भारत के लिए गौरव की बात है कि हम इस क्षेत्र में नियमन लाने वालों में अग्रणी हैं। भारत इस क्षेत्र में बढ़त लेगा और दुनिया के देशों के साथ हर पैमाने पर सक्षम मानकों के साथ इसका विकास करेगा। इस क्षेत्र में भारत के पास मेक इन इंडिया के लिए और भारत से ड्रोन और सेवाओं के निर्यात के लिए भी बड़ी क्षमता है।
नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री श्री जयंत सिन्हा ने इस मौके पर कहा कि आज हम देश में करोड़ों ड्रोन की उड़ान की अपनी सोच की ओर पहला कदम बढ़ा चुके हैं। ड्रोन एक सीमांत प्रौद्योगिकी है जिसके पास भारत के आर्थिक विकास को तेज करने की क्षमता है. ये तकनीकी हमारे किसानों, विनिर्माण क्षेत्र जैसे रेलवे, रोड, बंदरगाह, खदान और फैक्ट्री के लिए बड़े फायदा देने के साथ ही बीमा, फोटोग्राफी और मनोरंजन के क्षेत्र में बड़ा योगदान दे सकती है।
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ने ड्रोन नीति 2.0 की सिफारिशों के आधार पर राज्य मंत्री की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का भी गठन किया. उम्मीद है कि ये टास्क फोर्स साल के अंत तक अपनी फाइनल रिपोर्ट जारी करेगा। आरपीएएस के लिए ड्रोन 2.0 फ्रेमवर्क के तहत स्वायत्त उड़ान के लिए विनियमन, ड्रोन के जरिए डिलिवरी और उसके उसके आगे विजुअल लाइन के पार उड़ानों (बीवीएलओएस) को इसके तहत शामिल किया जाएगा
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