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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,29 Nov 2018 12:11:30 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफी) 2018 के दूसरे दिन परदे पर कुछ शानदार चीजें देखने को मिली, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा रोचक कार्यक्रम इस प्रतिष्ठित फिल्म महोत्सव के विभिन्न स्थलों पर परदे से परे आयोजित हुए। इन कार्यक्रमों में से एक था केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ (सेवानिवृत) द्वारा कला अकादमी में महात्मा गांधी प्रदर्शनी का उद्घाटन जहां उनके साथ फिल्मकार सुभाष घई और अभिनेत्री पूनम ढिल्लों भी मौजूद रहे।
कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा, "मनोरंजन और शिक्षा के साथ साथ मैं कारोबार करने वाली फिल्मों का भी प्रोत्साहन कर रहा हूं। हमने महात्मा गांधी पर एक प्रदर्शनी लगाने का अवसर भी लिया है जो हमारे राष्ट्रपिता पर सबसे बेहतरीन प्रदर्शनियों में से एक है। ये एक बेहद संवादात्मक प्रदर्शनी है जिसे इससे पहले देश भर में लगाया जा चुका है। अब हम इफी के 49वें संस्करण के मौके पर इसे गोवा में ले आए हैं।"
इसके बाद झारखंड राज्य पर केंद्रित 'स्टेट फोकस सेक्शन' का उद्घाटन किया गया।
इस अवसर पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे ने कहा, "हमने स्टेट फोकस की शुरुआत पहली बार की है और इसके लिए हमने झारखंड को चुना क्योंकि हम इस राज्य के फिल्मकारों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। हमारा मानना है कि वो दूसरों से किसी लिहाज से कम नहीं हैं। इससे न सिर्फ इन लोगों के लिए रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है बल्कि लोग प्रशिक्षित भी होते हैं और उनकी कुशलताएं प्रखर होती हैं। इफी के माध्यम से हम कहना चाहते हैं कि विश्व मंच पर भारत पहुंच चुका है। ये सिर्फ राज्यों की सकारात्मक मध्यस्थता से ही संभव किया जा सका है। स्टेट फोकस वर्ग के माध्यम से हम चाहते हैं अंतर्राष्ट्रीय कलाकार जान जाएं कि छोटे शहरों के कलाकार रचनात्मक कुशलता के ऊर्जाघर हैं और वो भी कुछ शानदार फिल्में बना सकते हैं। झारखंड को स्टेट फोकस रखकर हम वहां की संस्कृति, भाषा और कौशल को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। हम ये काम हर साल विभिन्न राज्यों के साथ करना जारी रखेंगे।"
इफी 2018 में इजरायल कंट्री फोकस वाला देश है और उसी के हिस्से के तौर पर वहां का प्रतिनिधमंडल लाल जाजम पर चला। यहीं पर चमक और भी रही क्योंकि इफी 2018 में अपनी फिल्म 'सा' से बतौर निर्देशक आगाज कर रहे गायक अरिजीत सिंह अपनी पत्नी के साथ रेड कारपेट पर चलते नजर आए।
मेकिनेज़ पैलेस भी इफी 2018 में एक महत्वपूर्ण स्थल रहा जहां काफी व्यस्त दिन रहा। यहां दिन के आधे हिस्से में एक मास्टरक्लास और एक पैनल चर्चा आयोजित हुई। प्रसून जोशी की मास्टरक्लास 'लिरिकल इमैजिनेशन अनलीश्ड' यानी 'खोल दी गई गीतों की कल्पना' निस्संदेह तौर पर दिन की प्रमुख सुर्खियों में से एक रही।
वैसे तो उन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं है, फिर भी बताया जाए तो प्रसून जोशी गीतकार हैं, पटकथा लेखक हैं, कवि हैं, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) के अध्यक्ष और मैक्कन वर्ल्ड ग्रुप इंडिया के सीईओ व एशिया पेसिफिक के अध्यक्ष हैं। विज्ञापन के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों ने उन्हें और देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान दिलाए हैं। इफी 2018 में प्रसून जोशी ने श्रोताओं को अपनी उपस्थिति से नवाजा।
श्री सचिन छाट्टे की मध्यस्थता वाले इस सत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त गीतकार और पद्मश्री प्रसून जोशी ने अपनी रचनात्मक प्रक्रिया को प्रेरित करने वाले कारकों, गीतों व कविता लिखने के बीच के अंतर व समानताओं और अपनी सच्ची आवाज या स्टाइल को ढूंढने की जरूरत पर विस्तार से बात की। इस सत्र में गायक और गीत लेखक प्रसून जोशी ने श्रोताओं के समक्ष गाया भी जिससे इस सत्र के लिए एक बहुत ही भावनात्मक स्वर तय हुआ। श्री जोशी ने अपने जीवन के शुरुआती वर्ष प्रकृति की गोद में अल्मोड़ा, नैनीताल, टिहरी और भारत के अन्य खूबसूरत हिस्सों में बिताए। जब उनसे पूछा गया कि उनके जिस शानदार विस्तृत काम ने उनको अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान जिताया है क्या उसके लिए प्रेरित करने में प्रकृति की एक भूमिका रही है, इस पर अपने चिर-परिचित काव्यात्मक अंदाज में जोशी ने कहा, "ये कहना उन रचनात्मक लोगों के लिए अन्यायपूर्ण होगा जो प्रकृति की गोद में नहीं पले और बढ़े।" श्री जोशी ने इसके साथ ये भी कहा कि, "लोगों ने कारावास में भी लिखा है। ये एक तय मानसिक तैयारी, संवेदनशीलता और अभिव्यक्त करने की क्षमता होती है जो इसमें भूमिका निभाती है। मानव मस्तिष्क उन चीजों और जगहों के इर्द-गिर्द एक कथा बनाता है जो हम देखते और अनुभव करते हैं। ये प्रक्रिया निजी और खूबसूरत होती है। हर जगह की अपनी एक खुशबू होती है जो आपके अवचेतन में छप जाती है। जब आप लिख रहे होते हैं तो ये सब आपके अंतिम उत्पाद को प्रभावित करता है और उसमें प्रतिबिंबित होता है।"
उभरते हुए कवियों और गीतकारों को सलाह देते हुए श्री जोशी ने कहा, "असमंजस में होना ठीक है। युवा बेचैन होते हैं तो आंशिक रूप से समाज से मिलने वाले दबाव की वजह से। वो ठीक है। अगर आप अपने तरीके को लेकर निर्णायक हैं तो फिर उसमें कोई तरक्की नहीं है। जब तक आप कुछ स्पर्श नहीं करते आप उसे महसूस नहीं कर सकते हैं। इसलिए खोजना बहुत जरूरी है। जब तक कि आप जो अनुभव कर रहे हैं वो सच नहीं है, तो फिर वो प्रामाणिक नहीं है। अगर आप लिखना चाहते हैं या फिर किसी रचनात्मक पेशे में हैं तो मेरी समझ ये है कि व्यक्ति को एक प्रामाणिक आवाज ढूंढनी चाहिए। ये एक मुश्किल यात्रा है लेकिन व्यक्ति को इस पर जाना ही होता है।"
इस मास्टरक्लास के बाद सवाल और जवाब का सत्र हुआ जिसमें श्री जोशी ने आकांक्षी गीतकारों और रचनात्मक कलाकारों के सवाल लिए। एक सवाल पूछा गया कि 'लेखक के गतिरोध' को कैसे पार किया जाए, तो इसका जवाब देते हुए श्री जोशी ने कहा, "इंसान को उसके अपने विचारों से अलग नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति और उसके विचारों के बीच एकता होनी चाहिए। उसके बाद लेखन स्वाभाविक रूप से हो जाता है। इसके साथ ही, व्यक्ति को इस बड़े अनुभव के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और विषय को महसूस करना चाहिए। और अंत में कहूंगा कि बहुत पढ़िए ताकि शब्दावली समृद्ध हो जो कि ज्यादा प्रभावोत्पादकता से खुद को अभिव्यक्त करने में मदद करेगी।"
इफी 2018 की सूची में स्वीडन मूल के महान फिल्मकार इंगमार बर्गमैन पर भी एक पैनल चर्चा तय थी ताकि उनकी जन्मशती में उनको श्रद्धांजलि दी जा सके। इस पैनल चर्चा का शीर्षक था - "वाइल्ड एट हार्ट, मास्टर एट क्राफ्ट" जिसमें यानिके ऑलुंद और उलरीका सुंदबर्ग ने हिस्सा लिया और सत्र की अध्यक्षता श्री सुनीत टंडन ने की। जो लोग इंगमार बर्गमैन से परिचित नहीं हैं वे उनको इससे जान सकते हैं कि जे श्नाइडर द्वारा संपादित किताब "वो 1001 फिल्में जो आपको मरने से पहले जरूर देखनी चाहिए" के पांचवें संस्करण में बर्गमैन की 10 फिल्में रखी गई हैं। अलफ्रेड हिचकॉक और हावर्ड हॉक्स के बाद वे तीसरे सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व वाले निर्देशक हैं और पटकथा लेखक के तौर पर ज्यादा संख्या में लेखन का श्रेय उन्हें दिया जाता है। इस सूची में उनकी फिल्में हैं - स्माइल्स ऑफ द समर नाइट (1955), द सेवेंथ सील (1957), वाइल्ड स्ट्रॉबैरीज़ (1957), थ्रू द ग्लास डार्कली (1961), विंटर लाइट (1963), परसोना (1966), आवर ऑफ द वुल्फ (1968), शेम (1968), क्राइज़ एंड विस्पर्स (1972) और फैनी एंड एलेग्जैंडर (1982)।
इफी 2018 इन महान फिल्मकार के जीवन की सात सर्वश्रेष्ठ फिल्मों का प्रदर्शन करते हुए उनकी जन्मशती का उत्सव मना रहा है। बड़े होते हुए बर्गमैन का उन पर क्या असर था इस पर बारे में बोलते हुए सुनीत टंडन ने कहा, "वो उन चंद फिल्मकारों में से थे जिनकी वजह से एक विशेषण की रचना हुई। 'बर्गमैनेस्क' वो शब्द है जो आप शब्दकोश में ढूंढ सकते हैं। इसका मतलब ये है कि उस तरह की फिल्में जो बर्गमैन ने बनाईं। बर्गमैन ने दुनिया के सिनेमा पर बहुत भारी प्रभाव डाला था।"
जब पूछा गया कि आज के दौर में बर्गमैन और उनकी विरासत को कहां रखा जाएगा तो यानिके ऑलुंद ने कहा, "अपनी फिल्मों में बर्गमैन ने जिन सामाजिक मसलों को छुआ वो सदाबहार हैं। हम हमेशा मानवीय रिश्तों की कमी और संपर्क की उस कमी में रुचि रखते रहेंगे जो उनकी व्यापक थीम लगती थी। उनकी ज्यादातर फिल्मों की उम्र बहुत अच्छे से बढ़ रही है, कुछ शुरुआती फिल्मों को छोड़ दें तो।"
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