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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,29 Mar 2018 02:03:14 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों तथा वाराणसी में भारत राष्ट्रीय राजपथ प्राधिकरण (एनएचएआई) के आयोजन में शामिल हुए। इन कार्यक्रमों में एनएचएआई की पांच परियोजनाओं के लिए आधारशिलाएं रखने का कार्यक्रम तथा राज्य सरकार के व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग द्वारा चयनित छात्रों को नियुक्ति पत्र वितरित करने का समारोह शामिल थे।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से वाराणसी ने उत्तर भारत और पूर्व भारत को गंगा जलमार्ग तथा सड़क मार्ग से जोड़े रखा है। गंगा नदी ने नगर तथा क्षेत्र की संस्कृति, सभ्यता, व्यापार और विकास में विशेष योगदान दिया है। आज इस भावना के नवीनीकरण की आवश्यकता है। राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1, पूर्व मालवाहक गलियारा तथा विभिन्न राजमार्ग परियोजनाओं के माध्यम से वाराणसी पूर्वी भारत के लिए उत्तर भारत का द्वार है। वाराणसी को आर्थिक विशेष क्षेत्र बनाने के लिए सरकार अवसंरचना तथा कनैक्टिविटी पर विशेष ध्यान दे रही है।
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि पर्यटन के क्षेत्र में वाराणसी के लिए असीम संभावनाएं हैं और यह क्षेत्र बड़े पैमाने पर रोजगार से अवसरों का सृजन कर सकता है। वाराणसी के हस्तशिल्प विश्व विख्यात है। राष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि हस्तशिल्पियों को विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सहायता प्रदान की जा रही है तथा उनके पारंपरिक कौशल को आधुनिक तकनीक व नए बाजारों के साथ जोड़ने के लिए आधुनिक सुविधाएं प्रदान की जा रही है। उन्होंने भरोसा जताते हुए कहा कि दीन दयाल उपाध्याय हस्तकला संकुल वाराणसी के कलाकारों की आय बढ़ाने में तथा नौकरियों के सृजन में सहायता प्रदान करेगा।
राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि अपने विरासत तथा निवासियों के ज्ञान, बुद्धिमत्ता तथा प्रतिभा के आधार पर वाराणसी 21वीं शताब्दी का एक प्रमुख नगर बना रहेगा। इस संबंध में केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रारंभ किए गए पहलों के प्रति राष्ट्रपति महोदय ने प्रसन्नता व्यक्त की।
राष्ट्रपति महोदय ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नाइक द्वारा संस्कृत में अनुदित पुस्तक, चरैवेति! चरैवेति! की पहली प्रति प्राप्त की। इस अवसर पर राष्ट्रपति महोदय ने कहा कि राम नाइक ने पिछले पांच दशकों के अपने सार्वजनिक जीवन में समर्पण और निस्वार्थ सेवा की अमिट छाप छोड़ी है। इस पुस्तक में उन्होंने अपने अनुभव साझा किए हैं और अपने सिद्धांत – सफलताओं और असफलताओं से अप्रभावित रहते हुए निरंतर कार्य करना - को स्पष्ट किया है
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