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अपसी विभेद में उलझ गया है महागठबंधन

By समाचार नाउ ब्यूरो | Publish Date: Wed ,19 Aug 2020 10:08:17 pm |


समाचार नाउ ब्यूरो— पटना -2020 की सियासी लड़ाई की तैयारी में जुटा महागठबंधन चेहरे की सियासत में आकर उलझ गया है महागठबंधन के घटक दल राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है और जिस तैयारी का दावा दूसरे चेहरे के भरोसे करने की बात हो रही है उस पर दूसरे सहयोगी दल भरोसा नहीं कर पा रहे हैं एक दूसरे के भरोसे के भंवर जाल में उलझा महागठबंधन मैं जिस तरीके से विभेद बढ़ रहा है चुनाव से पहले ही एक नहीं कई गांठ पड़ गई है

राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व में महागठबंधन अभी तक नीतीश के विरोध की रणनीति को अमलीजामा पहना टी रही है वजह भी साफ रहा है विधानसभा में राष्ट्रीय जनता दल की जो संख्या है उसी का फायदा विपक्ष में शामिल तल उठा भी पा रहे हैं लेकिन 2020 की तैयारी में जुट रहे महागठबंधन के घटक दलों को राष्ट्रीय जनता दल का चेहरा राष्ट्रीय जनता दल का नेतृत्व दोनों मंजूर नहीं है एक नहीं कई मंच पर इस बात की चर्चा हो चली है बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का चेहरा महागठबंधन में शामिल सभी घटक दलों के सर्वसम्मति से होगा सवाल यह उठ रहा है कि जिस चेहरे के सियासत में महागठबंधन में गांठ पड़ रही है वह खुलेगी कैसे और अगर यह मजबूत होता गया तो निश्चित तौर पर विपक्ष इसे अपना हथियार बना लेगा।

बिहार में चेहरे की सियासत की लड़ाई में हर किसी को अपनी बात मजबूत ही दिखती है तेजस्वी यादव नीतीश के नेतृत्व में उप मुख्यमंत्री रहे तू जीतन राम मांझी नीतीश के विश्वास पर ही मुख्यमंत्री बने थे उपेंद्र कुशवाहा की सियासत को भी उड़ान के पंख नीतीश के साथ रहने पर ही मिले थे यह अलग बात है कि बीजेपी में जाने के बाद उन्हें केंद्र की गद्दी मिली लेकिन इन तमाम चीजों के बाद भी चेहरे पर विरोध और विभेद की सियासत बिहार में चलती रही 2015 के बाद सियासत में शुरू हुई लड़ाई माझी के बाद तेजस्वी यादव पराई जब माझी नीति से नाराज होकर अलग हुए थे तो भाजपा का साथ मिला था लेकिन भाजपा की नीतियां जब भारी पड़ने लगी तो तेजस्वी के साथ होली है रालोसपा की यही स्थिति उपेंद्र कुशवाहा की रही नरेंद्र मोदी की 2014 की सरकार में मंत्री को बने लेकिन बिहार में सियासत को लेकर मंत्रिमंडल से अलग हो गए उम्मीद थी कि चेहरे पर बहुत कुछ मिलेगा लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्टी की मठिया पलीत हो गई तो राजद के साथ गठबंधन की भूमिका में शामिल हो गए लेकिन चेहरे पर भरोसा है इसलिए विभेद कम होने का नाम नहीं ले रहा है राजद में गठबंधन के साथ सबसे पुराने समय से कांग्रेस ही रह रही है ऐसे में कांग्रेस की बात सुनना भी लाजमी है चेहरे की सियासत पर राजद को बड़ा दिल दिखाने की बात कांग्रेस ने तो कह दी लेकिन बड़ी जीत के लिए किस चेहरे पर ताव खेला जाए इस पर खुद कांग्रेस भी पशोपेश में है

बिहार की सियासत में महागठबंधन अपने वजूद को मजबूत कर पाएगा इस पर सवालिया निशान उठना शुरू हो गया है हाथ इन तमाम चीजों के बीच अगर नीतीश के पक्ष को समझा जाए तो वो और मजबूत होकर उभर रहे हैं सवाल उत्तर में इसलिए है कि मांझी को बिहार की गद्दी नीतीश ने ही दी थी माझी बदल गए राजद के साथ नीतीश ने गठबंधन किया था लेकिन परिस्थितियां बदल गई उपेंद्र कुशवाहा नीतीश के साथ थे लेकिन समय और जरूरत ने राजनीति को बदल दिया हालांकि भाजपा में भी ज्यादा दिन नहीं रह पाए बदलाव वहां भी करना पड़ा लेकिन जिस तरह से बिहार की परिस्थिति में राजनीतिक दलों को चेहरे की राजनीति करनी है उसमें हर कोई पशोपेश में है गठबंधन में साथ रहना तो चाहता है लेकिन चेहरे की सियासत पर गांठ पड़ जा रही है अब देखना यह है कि कितनी जल्दी महागठबंधन अपने इस चेहरे की सियासत को ठीक कर पाता है



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