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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Wed ,04 Oct 2017 05:10:30 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो : पुलिस से ज्यादा वर्चस्व की लड़ाई उग्रवादी संगठनों पर भारी पड़ रहा है. पिछले तीन वर्षों के आंकड़ों को देखें, तो जनवरी से अगस्त तक उग्रवादी संगठनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई में 41 उग्रवादी मारे गये. 2015 में 14, 2016 में 11 और 2017 में 16 उग्रवादी मारे गये, जबकि पुलिस एनकाउंटर में 2015 में 24, 2016 में 13 और 2017 में तीन उग्रवादी मारे गये. वहीं ग्रामीणों ने 2015 में एक और 2016 में तीन उग्रवादियों को ढेर किया.
तीन वर्षों 2015 में 146, 2016 में 146 और 2017 में 139 घटनाएं घटी हैं. आंकड़ों के मुताबिक नक्सली वारदात में कमी आयी है. दूसरी ओर उग्रवादी संगठनों द्वारा अंजाम दिये गये वारदातों पर गौर करें तो साफ है कि भाकपा माओवादी संगठन ने 2015 में 53, 2016 में 47 और 2017 में 59 घटनाओं को अंजाम दिया है. इसके बाद जेजेएमपी संगठन है. इस संगठन ने 2015 में 08, 2016 में 09 और 2017 में 13 वारदात को अंजाम दिया. बाकी संगठन 2015 और 2016 की अपेक्षा कम घटनाआें में शामिल रहे.
2017 का ग्राफ बताता है कि लातेहार, पलामू, गिरिडीह, चतरा, चाईबासा और बोकारो में भाकपा माओवादी और खूंटी, चाईबासा, गुमला और रांची में पीएलएफआइ की सक्रियता ज्यादा रही. जबकि चतरा, लातेहार, हजारीबाग और गढ़वा में तृतीय प्रस्तुति सम्मेलन कमेटी की गतिविधि बढ़ी.
किन जिलों में किस संगठन ने कितने वारदात को दिया अंजाम
भाकपा माओवादी : लातेहार जिले में 10, पलामू में सात, गिरिडीह में सात, चतरा में छह, चाईबासा में छह और बोकारो में पांच वारदात को दिया अंजाम.
खूंटी में आठ, चाईबासा में सात, गुमला में छह और रांची में चार वारदात को पीएलएफआइ ने अंजाम दिया.
चतरा में पांच, लातेहार में तीन, हजारीबाग में सात और गढ़वा में पांच घटनाओं में तृतीय प्रस्तुति सम्मेलन कमेटी रहा शामिल
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