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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Tue ,02 May 2017 06:05:32 pm | Updated Date: Tue ,02 May 2017 07:05:20 pm
नयी दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों मिली करारी हार के बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को करारा झटका दिया है. प्रदेश की सत्ता पर कब्जा करने के लिए कांग्रेस ने यूपी की सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया था. नारा दिया था : ‘यूपी को यह साथ पसंद है’, ‘यूपी के छोरे बनाम बाहरी मोदी’.
चुनाव को बीते अभी एक महीने से कुछ ही समय अधिक हुए हैं, लेकिन कांग्रेस के ‘हाथ’ ने समाजवादी पार्टी की साइकिल का ‘हैंडल’ छोड़ दिया है. कांग्रेस ने फैसला किया है कि उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में वह अपने दम पर मैदान में उतरेगी.विधानसभा चुनावों में जब कांग्रेस के साथ समाजवादी पार्टी का गंठबंधन हुआ था, तो दावे किये जा रहे थे कि राहुल गांधी प्रदेश में अखिलेश की मदद करेंगे और बदले में वर्ष 2019 के आम चुनावों में अखिलेश केंद्र में सरकार बनाने और प्रधानमंत्री बनने में राहुल गांधी की मदद करेंगे.
लेकिन, विधानसभा चुनाव में करारी हार का असर राजनीतिक पटल पर दिखने लगा है. चुनाव पूर्व राजनीतिक लाभ लेने के लिए बने गंठबंधन हार के बाद दरकने लगे हैं. यूपी में पहली बार समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गंठबंधन कर सत्ता में वापसी का फॉर्मूला बनाया था, लेकिन यह फॉर्मूला फेल हो गया.
इस हार के बाद जहां समाजवादी पार्टी के भीतर कांग्रेस से गंठबंधन को हार की वजह माना गया, तो कांग्रेस में भी इस हार की वजह को समाजवादी पार्टी से गंठबंधन को ही माना गया. बावजूद इसके, चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने स्पष्ट कहा था कि यह गंठबंधन बरकरार रहेगा.
कांग्रेस नेता राज बब्बर के हवाले से कहा है कि यूपी में स्थानीय निकायों के चुनाव में कांग्रेस अकेले लड़ेगी. हालांकि, राज बब्बर ने कहा कि उन्होंने कोई गंठबंधन समाप्त नहीं किया है. बब्बर ने साफ किया कि निकाय चुनाव वर्कर के व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर लड़े जाते हैं. पार्टी वर्कर जमीन पर लोगों से सीधे संपर्क में रहता है. वर्कर के जरिये कांग्रेस की नीतियों की पहचान बनती है. इसी से संगठन मजबूत होता है. पार्टी मजबूत होती.
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