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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Wed ,12 Apr 2017 04:04:25 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - आम आदमी पार्टी, बिहार के प्रदेश मीडिया प्रभारी, बबलू प्रकाश ने कहा, केंद्र सरकार और बिहार सरकार, के विकास के एजेंडे में “किसान-मजदूर” नामक प्राणियों के लिए कोई संवेदना नहीं हैं, आज किसानो की दुर्दशा देख “बापू” की आत्मा, रो रही होगी..महराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब के किसानो की तरह बिहार के किसान भी पिछले कुछ वर्षो से आत्मदाह व आत्महत्या करने लगे हैं | अंग्रेजी हुकूमत के निलहो से अधिक जुल्मी सवित हो रही हैं आजाद भारत की सरकारे ।
1917 में बापू द्वारा किये गये किसान आन्दोलन चंपारण सत्याग्रह आज “100 वर्ष” शताब्दी पूरा कर लिया हैं | जहां पूरी सरकारी तंत्र चंपारण सत्याग्रह शताव्दी समारोह हर्षोउल्लास से मना रहा था, वही बापू की कर्मभूमि “मोतिहारी” की धरती, मोतिहारी में सरकारी तंत्र के नाकामी के कारन शर्मसार हो गयी, मोतिहारी सुगर मिल लेबर यूनियन के दो मजदूरों ने अपने ऊपर पेट्रोल छिड़क कर आत्मदाह कर लिया, विदित हो कि गन्ना किसानों का बकाया राशि सूद सहित भुगतान के लिए सरकार से बार गुहार लगाने के बावजूद भुगतान नहीं होने कारण माननीय पटना उच्च न्यायालय मे दिनांक-31.08.15 को जनहित याचिका CWJC No- 14263/2015 दायर किया गया,
आम आदमी पार्टी बिहार, मुख्य मंत्री श्री नीतीश कुमार से आग्रह पूर्वक निवेदन करती हैं की चंपारण सत्याग्रह शताव्दी के मौके पर बिहार के किसानो का बैंक कर्ज अविलम्ब माफ़ किया जाए |
बबलू प्रकाश ने कहा, वर्ष 1917 के 10 अप्रैल को गांधी पटना आए और चंपारण जा कर, हजारों भूमिहीन मजदूर एवं गरीब किसानो को अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार व 'नील के धब्बों' से मुक्ति दिलाई थी |
बिहार और आज़ाद भारत में, आर्थिक रुप से गुलाम किसानो की समस्या वही मुँह बांये खड़ा हैं, जो सौ वर्ष पूर्व थी | सरकार की कृषि नीति (कृषि सब्सिडी) लुट का अड्डा है, सब्सिडी का लाभ कृषि यांत्रिक बनाने वाली बड़े बड़े कम्पनियों को फायदा मिल रहा हैं, किसान के हाथ कुछ नहीं आता हैं, किसानो के लिए खेती किसानी घाटे का सौदा साबित हो रही हैं और यही किसानी के संकट का मूल कारण हैं |
विडम्बना हैं की खेती किसानी में लागत निरंतर बढती जा रही हैं और श्रम मूल्य को घटाया जा रहा हैं | इस कारन किसान कर्ज लेकर खेती करने को मजबूर हो जाता हैं और इस जाल में फंस जाता हैं | भुखमरी और गरीबी के चलते किसान कर्ज को चुकाने में असमर्थ रहता हैं | कर्ज लेने के बाद चक्रवृद्धि ब्याज के चक्कर में अदायगी राशि दो चार और सौ गुनी हो जाती हैं, जिसे लाचार किसान अपना खेत खलियान बेचकर भी नहीं चूका सकता |अंतत: अपना आत्मसम्मान बचाने के लिए वह आत्महत्या का लेता हैं, संकट कितना गंभीर है, इसका अंदाजा किसानों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं से लगाया जा सकता है. जिस देश को कृषि का देश कहा जाता है।उसी देश में 1995 से 3 लाख से ज्यादा किसान आज तक आत्महत्या कर चुके है। आंकड़ो के अनुसार 2015 से अब तक 12 हजार 360 किसान ।हर महीने एक हजार 50 किसान और CSDS के सर्वे के अनुसार 35 किसान हर रोज आत्महत्या कर रहे हैं
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