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शैबाल गुप्ता और आद्री को नया टास्क- हिटलर को खोजो- भारत में 1930 का युरोप दिखता है

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Mon ,27 Mar 2017 04:03:01 pm | Updated Date: Mon ,27 Mar 2017 04:03:24 pm


हिटलर को खोजकर निकालने का काम आद्री के नए शोध में शामिल

1917 के चम्पारण सत्याग्रह का बापू नहीं दिख रहा देश में

कुछ विदेशी बुलालो देश को नीचे दिखाओ नया टास्क है

समाचार नाऊ ब्यूरो -  बिहार में चल रहे शैवाल गुप्ता की संस्था में नए नए शोध की झड¬ी लग गयी है। कार्यक्रम सिल्वर जुबली का है और कई सितारा होटल में चल रहा जो लोग इसमें नहीं गए या नहीं जा पाए उनके लिए आज की इंडिया का एक शोध गुप्ता जी की रिसर्च कंपनी ने की है जिसने यह कहा है कि आज का इंडिया उस 1930 के युरोप जैसा दिखता है। रिर्सच का यह व्योरा एम्सटर्डम इंस्टीच्यूट आॅफ सोसल साइंस के रिर्सच प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन ने पेश किया है।

1930 का युरोप कैसा था, इतिहास के पन्नों को पलटा जाय तो हिंसा का एक बडा स्वरूप हिटलर के 1933 तक सत्ता में स्थापित होने का और अशांन्त विश्व का मिलता है। 1930 के जिस युरोप की बात माननीय प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन ने की उसकी एक शुरूआत 1929 के उस वाल स्ट्रीट क्रैस के बाद युरोप और दक्षिण अमेरिका जैसे देश खास तौर पर जर्मनी को उदाहरण माना जाय तो वहां पर सत्तावादी शासन का उभार रहा।

हमरे देश में आज एैसा है क्या। क्या शोध कर्ता भारत पहली बार आए हैं या उनके आंख का चश्मा भारत को सिर्फ उसी नजरिए से दिखता है जहां अंग्रेजो की गुलामी में भारत की दासता प्रथा चलती थी। आज से शैवाल गुप्ता की कंपनी इस नए शोध पर काम करेगी कि आखिर आज के इस इंडिया में हिटलर कौन है। हिटलर जैसे लोगों की जानकारी रखने वाले विद्वान कौन है जिनकी पारखी नजर यह सब समझ गयी है।

क्यूं बन रहा है देश का मजाक

क्या मजाक है साहब हमारे देश की इससे बडी त्रासदी क्या हो सकती है हमंे आकर गाली देकर चले जाओं और हम कुछ न कहें। क्या यही बात भारत के लोग युरोप के किसी देश में जाकर कह सकते है कि 1930 में हमारे यहां मानवता को स्थापित करने के लिए हमारे राष्ट्रपिता जब लड़ई लड़ रहे थे तो तुम्हारे देश के निर्माता पूरे देश को ही कत्लगाह बना दिए थे। आज के लोग युरोप में जाकर कह सकते है 1930 के जिस युरोप को आज का प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन देख रहा है क्या उसे 1930 के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आन्दोलन नहंी दिखे। जब युरोप के कई देश मानवीयता के कत्लगाह बन गए थे उस समय बापू नील क्रांति के लिए चम्पारण में विरोध करने आए थे। 1930 का बापू का दंड़ी मार्च आज के भारत को युरोप के 1930 के किस सिद्वान्त को बताता है। समानता का अधिकार अंग्रेजो की भेद भाव की रणनीति महिलओं को मजबूत बनाने का काम बापू ने कब किया था यह तो आप जानते ही होंगे प्रोफसर साहेब।

आज के युरोप को 1917 के भारत के ज्यादा नहीं कहा जा सकता

प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन जी आप ने जिस असमानता की बात कही है उसे खत्म करने की शुरूआत बापू ने 1917 में की थी। 1947 का भारत पूरे विश्व के लिए मिशाल है। विश्व शांति के दूत हैं आज का भारत । सर्व धर्म समभाव की हितैसी और पोषक है भारत, महिला शसक्तिकरण का मिशान बनाया है इसी भारत ने। प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन जीे शायद भारत आते समय याद नहीं था कि वे किस धरती पर जा रहे है। ज्याद नहंी पढे होते तो कम से कम इतना ही पढ के आ जाते की आज का बिहार कहां है जो कभी कभार कह दिया जाता है के भारत के कई राज्यों में कई मायनों में पिछडा है।

यह वह बिहार है जहां की आधी आबदी पंचायत सत्ता को नीति देती है। 35 फीसदी आरक्षण के साथ महिलाऐं सरकारी नियम सम्मत नीतियों को अनुपालन कर रही है करवा रही हैं। सत्ता का नियम सबके लिए बराबर है... 1930 के कत्लकाही युरोपीयन शासन की बात तो दूर एक हत्या कर दीजिए समझ आ जाएगा आज के भारत का दंड। कहां से और किस नजरिए से आप को भारत 1930 का युरोप दिखता है रिसर्च के पन्नों को बदल लीजिए।

सिर्फ आद्री के बिहार पर आयी रिपोर्ट को पढ लेते बहुत कुछ समझ में आ जाता

प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन जी कभी अगर आप ने अपने पूर्वजो से हिन्दुस्तान के इतिहास के बारे में पूछा होता तो मानवीय सभ्यता की समानता का परचम आप को बता दिया गया होता। ज्यादा नही तो सिर्फ बिहार के बारे में शैवाल गुप्ता से ही पूछ लिए होते की 350 वें प्रकाश पर्व में बिहार और देश क्या कर रहा था। गौतम बुद्व ने यहां क्या किया था और आज उसकी प्रसंगिकता कितनी है। परे देश में समावेशी विकास की बिहार की पूरी परिकल्पना ही आद्री के बिहार पर किए गए काम में मिल जाता आप को अपना दिमाक ज्यादा भटकाने की जरूरत नहीं पडती और सिर्फ बिहार में ही यह पता चल जाता की आज का भारत बिहार के नजरिये से कहां पहुंच चुका है।

प्रोफेसर जोहैंनंस बर्मन जी आप को शायद जल्दी में बुलवा दिया गया तभी आप अंट शंट बोल गए। आप अगर सिर्फ शैवाल गुप्ता जी की आद्री जो बिहार के विकास पर रिपोर्ट बनाती है उसकी रिपोर्ट ही देख लेते तो आप का भ्रम सिर्फ बिहार ही तोड देता और आप यही के विकास में अपनी सारी रिर्सच भूल जाते। आर्थिक समानता असमानता हर जगह है। अमेरिका की आर्थिक हालत क्या है। चाइना कहां है। जर्मनी आज किस हालत में है आप से बेहतर कौन जानता होगा।

भारत को समझ लीजिए आज देश 4 जी के बाजार में है और बडी आबादी हाईटेक हो गयी है। 1930 में हिटलर ने कौन से बैंड विथ की इंटरनेट सेवा लांच की थी। हम संर्धष कर रहे हैं लेकिन देश को कत्लगाह नहीं बना रहे। हमारी संवेदना देख लीजिए की अगर बेटा गलत राह पर जाकर देश की एकता के लिए गडबडी करता है तो बाप उसकी मृत शरीर को लेने से मना कर देता है और पूरा देश उस बाप को सलाम करता है। क्या पढ और समझ कर आप ये सब कह डाले।

महोदय जिस पैसे की असमनता आप के दिमाक है वह स्वाभिक सी बात है। आप ने जो बाते कही और जहां कही वह भी उसी काल खंड मानस स्थित की विवेचना करता है। आप की गलती नहीं है यह हम जैसे भरतीयों का



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