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आईएसआई का पूर्वी पैकेज- कमजोर होता संगठन

By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Sat ,18 Mar 2017 08:03:23 pm |


समाचार नाऊ ब्यूरो - आईएसआई ने बिहार के रोहतस जिलें के नौहटा थाना क्षेत्र में पोस्टर लगाकार युवाओं को संगठन के साथ जुडने की अपील की है इसके बाद एक बात तो साफ हो गयी है आईएसआई का एजेंडे को जो भी पैकेज है वह लगातार कमजोर हो रहा है। यह तय है कि देश की संप्रभुता को जब जब चोट लगी है तब तब देश के सामने जो खडे मिले हैं वे कीर्तिमान ही बनए हैं बात अब्दुल हमीद की हो या फिर किसी वैसे बाप की जो आतंक में शामिल बेटे के लाश को लेने से इनकार कर देते है। यह एक एैसा उदाहरण है जो भारत मां के प्रति अन्नय समर्पण से कम नहंी है। 
बात पोस्टर से शुरू हुई है तो आईएसआई के पूर्वी पैकेज के उदभव के फार्मूले को भी समझ लेते है।

मायानगरी जो कभी बम्बई होती थी उसपर जो आंतक का साया होता था उसकी सबसे बडी सप्लाई पूर्वी भारत से थी। पूर्वी भारत में उत्तर प्रदेश और संयुक्त बिहार के साथ पश्चिम बंगाल इसका बडा गढ था। यूपी के आजमगढ से अबू सलेम का नाम पूर्वान्चल से सटे जिलों के भटके युवाओं के लिए कभी काफी उपजाउ रही थी  लोकसभा में हुए आतंकी हमले के बाद सबसे ज्यादा जांच की जद में आने वाला जिला आजमगढ ही रहा था।

देश में विकास की राह में जोडकर चलने वाले हाथ जब हथियार के अपने जीवन का औजार बना लिए तो उसका राजनीति करण भी खूब हुआ। कुछ पार्टियों का उदभव ही जातिय संरक्षण के एजंेडे के साथ हो गया। समय के अनुसार हालात और जरूरत बदलने लगे। देश में हुए आतंकी हमले के बाद जिस तरह से एक जाति को टारगेट करके देखा जाने लगा उससे समाजिक संतुलन का आधार ही बिगड गया। हालांकि कई मंच और जगह पर वैस लोगों ने इसका विरोध तो किया लेकिन कटटरवाद की जकडबंदी में उलझे युवा मन को समझापाने में उस सयम शायद समाज की नीति फेल रही और आंतक के लिए आने वाले पैकज की नीति को खूब जगह मिली। अब यह नहीं कहा जा सकता की आतंक के पैकेज की नीति अब नहीं चल रही है या नहीं चलेगी लेकिन उसकी रफतार धीमी हुई है इसबात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता और शायद यही हताशा है कि अब आतंकियो को गिरोह चलाने के लिए भर्ती का इस्तिहार देना पड रहा है और उन्हें समझ भी आ गया है कि नफरत के लिए बोई जाने वाली फसल शायद भारत के जमीन पर पैदा नहीं होगी।

 उत्तर प्रदेश में आतंक को जड से उखाडने में जुटी सुरक्षा एजेंशियों ने इस तरह से पकड बना ली है कि अब वहां से कुछ संचालित हो वह दुरूह हो चला है। हाल के दिनों में कानपुर में जिस तरह से आपरेशन हुआ उससे आंतक का मंसूबा पाले लोगों की कमर टूट गयी हैै। 
कैमूर में पोस्टर साट कर गिरोह में शामिल होने के निवेदन के पीछे का सच यह है कि जिस किसी के भी पास आईएसआई को पूर्वी भारत को संचालित करने की जिम्मेदारी उसकी जमीन पूरी तरह से उखड चुकी है। बिहार में कुछ नामों को बिहार की बेटी बताकर कभी कुछ राजनीति वोट के लिए हुई थी लेकिन अक्ब्टूबर 2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री की गांधी मैदान की सभा में जो धमाके हुए थे और रांची के साथ की भागलपुर और बिहार के कई जिले के लोग उसमे ंशामिल पाए गए थे उसके बाद इस संगठन के नए ठिकाने और समीकरण का पता चला। 2013 के बाद से जिस तरह से सुरक्षा एजेंशियों ने पूर्वी भारत को जांच की जद में रखा है उससे इस संगठन की पकड बहुत कमजोर हुई है। राजनीतिक पोषण तो लगभग समाप्त ही चुका है और जिस जाति को अपने ग्रुप के लिए गुमराह करने की रणनीति संगठन के लोगों की होती है वह भी लगभग खत्म हो रही है। हालांकि बेगूसराय से अभी हाल में हुई गिरफतारी कई संकेत तो देते हैं लेकिन फिर भी संगठन कमजोर हुआ है यह तय है। 
पूर्व भारत में इस आंतकी संगठन के पनपने का एक बडा कारण पिछले 20 सालों में फिल्म का नया बाजार रहा है। हालिया दिनों में ट्रेन हादसे के बाद जांच में जुटी सुरक्षा एजेंशियों को जो इनपुट मिले हैं वह 1990 के दशक में फिल्म और आतंक के दोस्ती को उजागर करता है। हिन्दी फिल्म के बाजार को टक्कर दे रही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की पूरी घुरी ही पूर्वान्चल रहा है। उत्त प्रदेश और बिहार के कलाकारों ने जिस तरह से अपनी धाक जमाई उससे बम्बई की पूरी हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री ही हिल गयी।

हालांकि भोजपुरी बाजर के टिके रहने में पैसे की भूमिका अहम थी जो कभी हिन्दी फिल्मों में होती थी और अंडरवल्र्ड उसे फाइनेंस करता था वही समीकरण आईएसआई ने यहा भी बैठा दिया। भोजपुरी फिल्मों लिए फाइनेंस और हिरो हिरोइन बनाने की लालच और उसके बदौतल अपने एजंेंडे की पूर्ति का एक फार्मूला उसे दिखा और यही बजह रही कि कुछ लोग उस लालच में फंस भी गए और भोपल रेल हादसे के बाद जिस तरह जांच में बाते सामने आई वह बताती हैं कि लगातार उखड रहे आंतकी संगठन की जड अब भटकते हुए अवसर को भजाने में जुट गयी। 
जब अपने आप पर मान होता है और देश पर इतराने का जज्बा तो वैसी बातों को जगह नहंी मिलती है जो समाज में अतिरेक भावना को जन्म दे। आतंक के लिए निकली नौकरी को कोई जगह नहंी मिलेगी यह तय है क्यूं कि बेटा यह जान गया है कि अगर ऐसा कुछ किए तो बाप नारज हो जाएगा और मां के आंचल में उसके गुस्से से छुपने की जगह भी नहीं मिलेगी। 
 



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