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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,16 Mar 2017 05:03:29 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - उत्तर प्रदेश ने जिस तरह का जनमत दिया वह लोकतंत्र में फतह का अजान वह अजान है जिसमें सबकी सलामती का रंग ही दिख रहा है साथ ही देश में जातिपंथी सियासत को करारा झटका लगा है। विकास के बुनियाद को खोखला बना रहे जातिगत राजनीति के उदभव से पैदा हुई राजनीतिक पार्टिया जातीय सियासत को अपनी राजनीतिक बपौती मान बैठी थी और उसमें कोई बदलाव होगा यह उनको कभी लगा ही नहीं।
कहतें है राजनीति और सियासत का रंग भी गजब का होता है फायदे और नुकासन के साथ सियासतदान देश को बांटकर भी राजनीति करने से नहीं चूकते वादों में देश होता है मन में वोट होता है यह भारत देश के आजादी के बाद की सियासत है कि आज भी अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के अलग-अलग विकास की अवधारणा बतायी जाती है जिस वसुधैव कुटुम्बकम की बात हम करते हैं वहां वोट की राजनीति धर्म की परिभाषा और उसमें दलगत भावना को भजाने में भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहते है कभी दंगों की सियासत का दंभ भरकर कभी मंदिर और मस्जिद की जंग बताकर क्या वापू ने इसी भारत की कल्पना की थी
1990 के बाद से जिस मंडल आयोग की आग में उलझे विकास की ललक में दोड़ रहे यूपी के मन को जातीय रंग में ढालकर राजनीतिक दलों ने अपना आधार बनाया वह 2017 में दरक गया है। वह बच्चा जो एक साल का था उसने 16 सावन देख लिए और हार बात उसे उम्मीदों का पतझड ही मिला। विकास का वादा करने के लिए आने वाले नेताओं के जाने बाद उनके काफिले के गाडियों की धूल से नहायी हुई उम्मीद जो पूरे पांच साल चेहरे से साफ ही नहंी हुई उसे चुभने लगी और उसने जब बदलाव का मन किया तो अजान की धुन ही बदल गयी और कई लोगों की नीद ही उड गयी
उत्तर प्रदेश ने जिस तरह से जनादेश दिया है उसपर बहुत कुछ लिखा जाएगा बहुत कुछ कहा जाएगा लेकिन एक बात तो साफ है कि सबकी सलामती के लिए यूपी ने जो लोकतंत्र में फतह का अजान किया है उसमें सबकी सलामती का रंग ही दिख रहा है। भाजपा को मुस्लिम वोट नहंी मिलगा इसलिए मायावती ने उम्मीदवारों की एक बडी लिस्ट ही एक खास जाति को दे दिया। सपा ने अलग का गठजोड कर जातिय गोलबंदी पर वोट की पकड को मजबूत करने में लग गया। हालांकि भाजपा ने भी जातिय कार्ड खेलने में कोर कसर नहंी छोडी है लेकिन जनमत विकास को कुछ हद तक माना है।
उत्तर प्रदेश के जनमत का साफ संदेश है कि विकास हो और सिर्फ विकास हो। विकास की बातों के आडम्बर का आवरण ओढकर चलने वाले राजनीतिक दलों के लिए अच्छे दिन फिलहाल नहीं है। काम करिएगा तो काम होगा नही ंतो जाती को बेचकर राजनीति की दुकानदारी चलाने वालों को धंधा बंद होगा यह तय है। मायावती की प्रचंड हार इसबात का इसारा है और इसे भाजपा को भी आने वाले समय का मौन आदेश समझ लेना चाहिए।
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