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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Tue ,21 Feb 2017 03:02:57 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो - प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने चिर-परिचित शैली में चुनाव प्रचार के दौरान वातावरण खराब कर रहे है । प्रधानमंत्री के पद की गरिमा और जिम्मेंवारी को अनदेखा करते हुए प्रधानमंत्री ने सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने और समाज में धर्म के नाम पर धुर्वीकरण का कल प्रयास किया। प्रधानमंत्री का कल का कथन जहां उन्होनें कब्रिस्तान और शमशान की बात की, उनका सही चेहरा और उऩकी मानसिकता को दर्शाता है। ये स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी बावजूद प्रधानमंत्री और अमित शाह के दुष्प्रचार के बाद भी एक बड़ी हार की तरफ जा रही है और होने वाली हार से बौखलाकर प्रधानमंत्री संवाद का संतुलन खो चुके है । भारत बहुधर्मी बहुभाषी देश है। भारत का संविधान ये अनुमति नहीं देता किसी को भी धर्म के नाम पर उन्माद फैलाना, भावनाएं भड़काना या किसी तरह का समाज के अंदर तनाव या बंटवारा करना, चुनाव आयोग ने ये सख्त निरदेश दिए थे, चुनाव से पहले । चुनाव आयोग से ये देखना है कि प्रधानमंत्री के कल के कथन के लिए क्या कार्यवाही करते है ? चुनाव आयोग की एक संवैधानिक जिम्मेदारी है।
आनंद शर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मुख्य प्रचारक हैं भारतीय जनता पार्टी के, इसलिए ये अपेक्षा की जाती है कि प्रधानमंत्री को और बीजेपी को नोटिस जारी करे । प्रधानमंत्री देश के संविधान और कानून से ऊपर नहीं है मोदी जी को बेहतर यहीं होता-कि वो अपना लेखा जोखा देते 34 महिने के उन्होनें जो वायदे हिंदुस्तान के लोगों के साथ किए थे, वो वायदे कहां तक पूरे हुए । प्रधानमंत्री न तो किसानों की बात करते हैं, जो 2014 का वायदा था किसान की फसल की कीमत दोगुना करने का, अब वो किसान की आमदनी दोगुना करने की बात करते है 2022 तक । 2014 और 2019 के बीच का हिसाब देना है इनको क्योकि अभी 2017 है, 3 वर्ष हो जाएंगे मई महीने में 2 करोड़ रोजगार का इनका वचन था, एक साल के अंदर, इस मई तक 6 करोड़ नौजवानों को रोजगार मिलना चाहिए था। पिछले साल तक आपको मालूम है सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल 1 लाख 15 हजार नौकरी पैदा हुई, पर जो नौकरी टूटी है 8 नवंबर से पहले वो 1 करोड़ 28 लाख थी । 8 नवंबर के बाद से आज की तारिख तक जो एमएसएमई सेक्टर है, एसएमई सेक्टर है, इनफॉरमल सेक्टर है, जो लेबर इंटेंसिव सेक्टर है, असंगठित क्षेत्र भारत की इकोनॉमि का है, उसमें अनुमानित कम से कम साढ़े चार करोड़ से पांच करोड रोजगार खत्म हुआ । असंगठित क्षेत्र में 70 प्रतिशत कारखाने बंद है फैक्ट्री बंद है पूरे देश में । ये प्रधानमंत्री की आज जबावदेही बनती थी कि पहले अपना हिसाब दे और य़े बताएं कि उन्होनें झूठें वादे क्यो किए थे, क्या मजबूरी रहीं कि उन्होनें वायदाखिलाफी की । मतदाताओं को नए लुभावने वादे करने की कोई जरूरत नहीं है लोग नरेन्द्र मोदी जी की कथनी और करनी का अंतर समझ गए है । प्रधानमंत्री को हमारा एक सुझाव है कि भारत के मतदाताओं की विवेक और सूझ बूझ का अपमान न करे । इन्होनें राजनीतिक संवाद मे कटुता लाई है, पहले प्रधानमंत्री है जो हर राज्य के चुनाव में वहां के भविष्य के बारे मे लोगों को आश्वस्त करते घूम रहे है, देश का शासन कौन चला रहा है, ये मालूम नहीं, वो खुद तो दिल्ली से बाहर रहते है ।
जो हिंदुस्तान के अंदर एक सुशासन नहीं दे पाए और एक ऐसा शासन दिया है जो अधिनायकवाद है एक ही व्यक्ति सब निर्णय करते हैं, एक ही व्यक्ति का नाम है, एक ही व्यक्ति की छवि है। सत्ता का, नीति बनाने का, नीति को क्रिर्यानवन करने का और बड़े फैसलें देश मे करने का एक केवल एक व्यक्ति में वो सारी शक्ति समेट दी गई है और वो प्रधानमंत्री का कार्यालय है। ये देश कौन चला रहा है, किस तरह से चल रहा है ये प्रश्न आज पैदा होता है, इनके तमाम दावे गलत है इनके वादे झूठे साबित हुए, खोखले । प्रधानमंत्री को हमारी चुनौती है, सच्चाई औऱ ईमानदारी का जिसका साथ उन्होनें छोड़ दिया, एक बार ये चिंतन करें और देश के लोगों को य़े बताएं कि कौन-कौन सा वचन उन्होनें पूरा किया । हमारी ऐसी समझ है कि इसदेश का नौजवान और किसान भारतीय जनता पार्टी और विशेषकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस वायदाखिलाफी की सजा देगा और ये प्रजातंत्र मे आवश्यक है ।
प्रधानमंत्री ने इस चुनाव में जो अभी राज्य़ के चुनाव हो रहे है, अपने भाषणों में, अपने चुनाव प्रचार में विरोधियों को आरोपित, कलंकित करने का निरंतर काम किया और सीमा उन्होनें लांघ दी, जब सीधी धमकी राजनैतिक विरोधियों को वो देने लगें । एक बार नहीं बार बार धमकी, प्रधानमंत्री को ये समझना चाहिए कि भारत के लोग विश्वास करते हैं, विन्रमता पर सहयोग, परंतु प्रधानमंत्री में सहनशीलता नहीं है किसी भी तरह की आलोचना को स्वीकार करने में । बेहतर यें हो कि चुनाव में खुशहाली की बात की जाए, देश की जनता के विकास की बात की जाए समशान की और कब्रिस्तान की बात न हो । यें पहले प्रधानमंत्री है जिन्होनें शब्द जो बोलते है, शुभ बात नहीं बोलते, कड़वी बात बोलते हैं या अशुभ बात बोलते हैं, में विस्तार मे नहीं जाना चाहता है कि उन्होंनें कौन सी कौन सी बात कहीं है।
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