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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Sun ,12 Feb 2017 07:02:34 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो : एसआइटी ने हजारीबाग में बड़कागांव के पकरी-बरवाडीह, चट्टी बरियातू व केरेडारी में एनटीपीसी की परियोजना में करीब तीन हजार करोड़ तक के मुआवजा घोटाले की आशंका जतायी है. एसआइटी की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़े पैमाने पर फरजी जमाबंदी कर मुआवजे बांटे गये हैं. इस गड़बड़ी में बड़े अधिकारियों की संलिप्तता भी बतायी जा रही है. एनटीपीसी की तीनों जगहों की कोल परियोजना के लिए कुल 12011 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. इनमें 7611 एकड़ रैयती और 1128 एकड़ गैर मजरूआ है. 3272 एकड़ वन भूमि में 746 एकड़ जमीन जंगल-झाड़ की श्रेणी की है.
एसआइटी की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि पकरी-बरवाडीह में अधिग्रहीत कुल 8055 एकड़ जमीन में से 4839 एकड़ रैयती, 2536 एकड़ वन भूमि व 665 एकड़ गैर मजरूआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी जमीन पर कब्जा दिखा कर बड़े पैमाने पर फरजी तरीके से जमाबंदी की गयी. इस कारण रैयती जमीन का आंकड़ा सरकारी व वन भूमि से काफी अधिक हो गया. जांच के दौरान हजारीबाग डीसी कार्यालय और बड़कागांव सीओ कार्यालय ने जमीन अधिग्रहण संबंधी इन आंकड़े को लेकर अनभिज्ञता जतायी है.
: जांच के दौरान पाया गया कि अधिग्रहण की जानेवाली जमीन की पहचान सरकारी अमीन ने नहीं की. यह काम एनटीपीसी की ओर से नियुक्त अमीन ने किया. बाद में इसी के आधार पर मुआवजा बांट दिया गया. सरकारी स्तर के बजाय एनटीपीसी की ओर से ही जमीन का रकवा और उसके मालिक का नाम लिख कर अंचल कार्यालय को भेजा जाता था. अंचलाधिकारी (सीओ) इस पर सिर्फ अपना हस्ताक्षर कर देते थे. जिन लोगों के नाम गैर मजरूआ जमीन की जमाबंदी की गयी, उनमें से किसी की पहचान नहीं की गयी. वोटर लिस्ट से भी मुआवजा लेनेवाले लाभुकों के नाम का मिलान नहीं किया गया.
जांच रिपोर्ट के अनुसार, रजिस्टर-दो में फरजी तरीके से हजारों एकड़ जमीन की जमाबंदी कर दी गयी. यह काम 2004 से ही शुरू हो गया था, जब एनटीपीसी को बड़कागांव में कोल ब्लॉक आवंटित किया गया. 2009 तक रजिस्टर-दो में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गयी. कोल ब्लॉक के लिए जमीन के सर्वे का काम 2007 में खत्म हो गया था. इसके बाद जमीन अधिग्रहण का आदेश जारी किया गया. वर्ष 2014-15 तक बड़कागांव अंचल कार्यालय में जमीन का म्यूटेशन किया गया.
जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़कागांव सीओ कार्यालय ने पोस्ट ऑफिस की तरह काम किया. वहां के सीओ का औसत कार्यकाल बमुश्किल एक साल का रहा. वर्ष 2009 से 2015 के बीच 11 सीओ की पोस्टिंग की गयी. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह देखनेवाली बात है कि सीओ का पदस्थापन विभागीय स्तर से किया गया या नहीं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ एक सीओ का कार्यकाल एक साल से अधिक समय का रहा, जो अब दूसरे प्रखंड में पदस्थापित हैं, जहां एनटीपीसी के अन्य कोल प्रोजेक्ट का काम चल रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक इसी सीओ ने अपने कार्यकाल में बड़ी संख्या में लाभुकों की सूची का सत्यापन किया. सीओ ने अपने हस्ताक्षर के साथ तारीख अंकित नहीं की है. रिपोर्ट के अनुसार, 26 अगस्त 2016 को सीओ जांच कमेटी के कार्यालय में उपस्थित हुए. अपने बयान में बताया कि उन्होंने कभी भी किसी जमीन का स्थल निरीक्षण नहीं किया. एनटीपीसी की ओर से उपलब्ध करायी जानेवाली सूची पर दस्तखत कर देते थे. सीओ ने बयान में कहा है कि इसके लिए उन पर वरीय अधिकारियों का दबाव था. दबाव एेसा था कि एक बार उनके चार माह के वेतन पर रोक लगा दी गयी थी.
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