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By समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date: Thu ,12 Jan 2017 01:01:15 pm |
समाचार नाऊ ब्यूरो रांची : मंत्री सरयू राय ने 10 जनवरी को कैबिनेट की बैठक बीच में छोड़ कर निकलने के बाद अब मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है कि खदानों का लीज नवीकरण करने से पहले उनकी ओर से की गयी अनियमितताओं को दूर किया जाना चाहिए था. ऐसा किये बिना लीज नवीकरण करना उचित नहीं है. पत्र में उन्होंने कहा है कि 10 जनवरी की मंत्रिपरिषद बैठक में इस मामले में मैं अपना विचार रखना चाहता था. पर मुझे अवसर नहीं मिला. संसदीय प्रणाली में विचार-विमर्श की असहिष्णुता का स्थान नहीं होना चाहिए. मंत्रिपरिषद के भीतर और बाहर सहकर्मियों के बीच प्रासंगिक मुद्दों पर विमर्श का अभाव सरकार संचालन का स्वस्थ लक्षण नहीं है.
लंबे समय से विवादित रहा है मामला : सरयू राय ने अपने पत्र में कहा है कि राज्य में खनन पट्टों, खासकर लौह अयस्क खनन पट्टों का मामला लंबे समय से विवादों व पेंचदगियों से भरा रहा है.
उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा है कि आप सहमत होंगे कि इससे राज्य की छवि धूमिल हुई है. 2015 के आरंभ में आपका एक वक्तव्य संभवत: किरीबुरू से अखबारों में आया था कि सरकार राज्य के सभी लौह अयस्क खनन पट्टों के लीज का अवधि विस्तार करेगी. उस समय मैंने कहा था कि ये खनन पट्टे इसके लायक नहीं हैं.
पहले भी दिया था सुझाव : उन्होंने लिखा है, कुछ दिन बाद सरकार ने इसे लेकर विकास आयुक्त की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय समिति बनायी. समिति की अनुशंसा पर सरकार ने 2016 के आरंभ में 21 खनन पट्टों को रद्द कर दिया, क्योंकि सभी पट्टाधारियों ने अनियमितताएं बरती थी. इसके बाद सरकार ने सभी खनन पट्टों को अपने कब्जे में ले लिया. उस समय मैंने सुझाव दिया था कि खदानों का वैज्ञानिक क्षेत्र निर्धारण कर पट्टों का आवंटन नीलामी के माध्यम कर देना बेहतर होगा. इस बीच तीन पट्टाधारी उच्च न्यायालय गये. सरकार के वकील द्वारा उपयुक्त दलील नहीं देने के कारण न्यायालय ने स्टे दे दिया. बाद में उच्च न्यायालय ने कहा कि सभी आवेदक दो माह में सुनिश्चित करें कि उन्होंने अनियमितताओं को दूर कर लिया है. सरकार इसे संपुष्ट करे. अन्यथा इनका खनन रोक दिया जाये. इनका पट्टा अस्वीकृत करने का निर्णय भी न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि इसमें विहित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है.
मंत्री ने लिखा है कि इसके बाद होना यह चाहिए था कि सरकार इनके खनन पर रोक लगाये और विहित प्रक्रिया का पालन करते हुए अन्य सभी खनन पट्टों को अस्वीकृत करने की प्रक्रिया आरंभ करे. लेकिन सरकार ने उल्टे इन सभी खनन पट्टों को अवधि विस्तार देने का प्रस्ताव मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के लिए भेज दिया. मंत्रिपरिषद ने 28 दिसंबर की बैठक में इसे मान भी लिया. मैं उस बैठक मे उपस्थित नहीं था. अगले दिन मैंने इस बारे मे आपसे बात की. मुझे लगा आप हमारे अनुरोध पर गौर करेंगे. पर 10 जनवरी की बैठक में गौर करना तो दूर आप इस पर कुछ सुनने के लिए भी तैयार नहीं हुए. मुझे यह ठीक नहीं लगा.
मंत्री ने लिखा है कि इससे सरकार की छवि धूमिल हुई है. इस विषय को मंत्रिपरिषद के समक्ष लाने का कोई औचित्य नहीं था. प्रासंगिक नियमों के अनुसार यह खान विभाग का मामला है. विभाग अपनी जिम्मेवारी मंत्रिपरिषद पर डाले यह उचित नहीं है. आश्चर्य है कि जिन्हें उच्च न्यायालय ने अनियमितताओं को दो माह के भीतर दुरुस्त करने के लिए कहा, उन्हीं के अवधि विस्तार के विभाग के प्रस्ताव पर कैबिनेट ने मुहर लगा दी. एमसी रूल के अनुसार जो खनन पटे दो साल से अधिक समय तक बंद पड़े हैं, उन्हें रद्द करने की प्रक्रिया आरंभ करने की जगह विभाग ने इनके अवधि विस्तार का प्रस्ताव मंत्रिपरिषद में भेज दिया. मंत्रिपरिषद ने इसे मान लिया. उल्लेखनीय है कि दो-चार को छोड़ कर सभी लौह अयस्क पट्टे इसी श्रेणी मे हैं .
सरयू राय ने आगे लिखा है कि विडंबना तो यह है कि अन्य सभी लंबित खनन पट्टों को भी थोक भाव से अवधि विस्तार देने का प्रस्ताव कैबिनेट को खान विभाग ने भेज दिया. कैबिनेट ने जानने की कोशिश किये बिना कि ये पट्टे किस चीज के हैं, कहां हैं, इनकी समीक्षा हुई है या नहीं, इन पर भी स्वीकृति दे दी. यह अनियमितता है. जो नियमों के उल्लंघन के दोषी हैं, लंबे समय से बंद हैं. शाह कमीशन ने जिन पर पेनाल्टी लगायी है, न्यायालय ने जिन्हें उल्लंघन ठीक करने के लिए दो माह का समय दिया है, एमसी रूल के अनुसार जिन्हें रद्द किया जाना चाहिए, उन्हें कैबिनेट से अवधि विस्तार दिला देने से बढ़ कर दूसरी गलती क्या होगी.
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