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फिल्म ‘दम लगा के हईशा- मस्त
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समाचार नाऊ ब्यूरो | Publish Date:13:11:58 PM / Sat, Mar 7th, 2015 |
फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ का टाइटल काफी आकर्षक है। ये शब्द जो उस समय बोले जाते हैं जब आप कोई ऐसा काम कर रहे हैं जिसमें जोर लगाना पड़ता है, ये कोई गुजरे हुए जमाने की पुरानी यादों को याद दिलाता है। यही वो पुरानी यादें है जिसे लेखक-डायरेक्टर शरत कटारिया अपनी फिल्म में इतनी आसानी से क्रिएट करते हैं जिसमें 90 के दशक को दर्शाया गया है और उत्तर भारत के छोटे से गांव हरिद्वार में जो ग्लोबलाइजेशन के दौर में जैसे बहुत पीछे नजर आता है।
अयुष्मान खुराना, प्रेम प्रकाश तिवारी के किरदार में हैं या लप्पू जो उसे प्यार से बुलाया जाता है। वो दसवीं फेल 25 साल को लड़का है जो अपने पिता की ऑडियो केसेट रिपेयर की दुकान में बैठता है और कुमार सानू के हिट गाने सुनता रहता है। उसके परिवार द्वारा जोर जबरदस्ती करने पर उसकी शादी एक पढ़ी लिखी पर मोटी लड़की संध्या यानी न्यूकमर भूमि पेडनेकर से कर दी जाती है, पर वो अपनी इस नई नवेली दुल्हन से बिल्कुल भी प्यार नहीं कर पाता।
कटारिया विश्वसनीय परिदृश्यों बनाते हुए हमें ऐसे किरदार देते हैं जो बिल्कुल रियल लगते हैं। प्रेम अपनी पत्नी के साथ रूखा व्यवहार करता है, उसे अपनी पत्नी के साथ देखे जाने में शर्मिंदगी महसूस होती है, और वो ये मानता है कि संध्या से शादी करके उसने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली है। वहीं संध्या अपने वजन को लेकर शर्मिंदा नहीं है, वो अपने आप में आश्वत है और वो लोगों को जवाब देना जानती हैं। फिल्म में और भी किरदार हैं, चिल्लाते हुए पिता, जबरदस्ती करती मां, दखलअंदाजी करती बुआ और कुछ दोस्त और रिश्तेदार जो समय-समय पर समस्या को सुलझाने के लिए सामने आ जाते हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट हर एक किरदार को उसकी मौजूदगी की वजह देती है, जो अचानक से फिल्म में हंसी देते हैं।
पर फिल्म की जान है इसके दो मुख्य किरदारों के बीच का रिश्ता और उसमें आने वाले बदलाव। कटारिया अपनी स्क्रिप्ट को उसी गति के हिसाब से आगे बढ़ाते हैं, वो कभी भी आसान रास्ता अपनाते हुए बनावटीपन की और तेजी से नहीं बढ़ते। अयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर के बीच की कैमिस्ट्री बेहद चार्मिंग है और दोनों ही दिलों को छूने वाला अभिनय देते हैं। अयुष्मान पूरी इमानदारी से इस किरदार को निभाते हैं। एक इनसेक्योर नौजवान जो गलत सोच के साथ जिंदगी जा रहा है और फिर उसे धीरे-धीरे अपनी गलती का एहसास होता है, अयुष्मान हर सही नोट पकड़ते हैं। वहीं भूमि मानों हर सीन चुरा लेती हैं जिसमें वो हैं। वो आपको उनकी परवाह करने पर मजबूर कर देगी, बिना अपने किरदार पर दया दिखाए।
सीधी सादी औ हल्की फुल्की, वहीं हिंदुस्तान में छोटे शहरों की जिंदगी की दर्शाती, ‘दम लगा के हईशा’ एक चार्मिंग फिल्म है जिसे आपको मिस नहीं करना चाहिए। मैं ‘दम लगा के हईशा’ को पांच में से साढ़े तीन स्टार देता हूं।
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